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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %Dगुरुवाणी प्राथमिक ज्ञान भी जिसके पास नहीं, प्राथमिक आचार विचार की पवित्रता भी जिसके पास नहीं, वह आत्मा की पवित्रता और पूर्णता को कैसे प्राप्त करेगा? इसीलिए यहां तो क्रमिक विकास में परमात्मा ने मान्यता दी है. आत्मा के अन्दर, धार्मिक कार्यों के अन्दर व्यक्ति को पहले अपनी स्थिति मजबूत कर लेनी चाहिए. इसके लिए सर्वप्रथम प्राथमिक स्थिति है - मैत्री. जगत के जीव मात्र के साथ मुझे इस प्रकार का सम्बन्ध रखना ही नहीं है तो सारी क्रिया आपकी निष्फल जाएगी. हमारे यहां एक-एक महीना का उपवास करते हैं. नहीं करने वालों से, जो करते हैं, वे धन्यवाद के पात्र हैं. मुसलमानों में रोजा रखते हैं. ईसाइयों में भी तप होता है. दुनिया के हर एक धर्म में किसी न किसी प्रकार तप का आयोजन रखा गया है. इन्द्रियों के दमन के लिए, विषयों को नष्ट करने के लिए, आत्मा की शुद्धि के लिए तप आवश्यक है, तप की भट्टी में आत्मा का शुद्धिकरण होता है. हम ये सारी क्रिया करते हैं. रोज हम प्रार्थना करते हैं. दुनिया के अन्दर लाखों मन्दिर, चर्च, मस्जिद और गुरुद्वारे हैं, कोई कमी नहीं है, प्रभु का द्वार हर जगह आपको मिलेगा. हमारी साधना क्यों नहीं सफल बन पाती? यह संसार मेरा स्वर्ग जैसा क्यों नहीं बनता? यहां हमारे मन के अन्दर भयंकर नरक जैसे विचार कैसे आते हैं? यह कुछ करने के बाद हम वहीं के क्यों रहते हैं? इसका कारण क्या, कभी आपने सोचा? मजदूरी करता हूं, साधना का श्रम करता हूं. सफलता क्यों नहीं मिलती? देखें पूरे वर्ष तक मैने मजदूरी की है. दस घंटे दुकान के अंदर हमने श्रम किया, यह नफा क्यों नहीं बतलाता है? चेहरा कह देगा. चिन्ता से प्रकट हो जाएगा. वर्ष बेकार गया. यह संवत्सरी जो आ रही है. उस दिन यहां अंदर का चौपडा भी देखना है. पूरे वर्ष पर्यन्त मैंने तप किया, उपवास किया, मास रवणम् किया, बहुत प्रार्थना की, परमात्मा की भक्ति की, प्रतिक्रमण किया. सामायिक किया, अंदर का चौपड़ा टटोलना कि नफा कितना मिला. हमारे अंदर वह समत्व की भमिका किस प्रकार की आई है? मैत्री और प्रेम की भूमिका में कितनी मैंने वृद्धि की, कितना बढ़ाया, उसे कितना व्यापक किया? आज तक हमने इसपर कभी विचार नहीं किया. यह बहत खतरनाक स्थिति है. हर साल हम लास में जा रहे हैं, बस जीवन व्यतीत हो रहा है. नफा में कुछ नहीं. सेठ मफतलाल दिल्ली से बंबई गए थे. जैसे ही स्टेशन पर उतरे वहां सेठ चन्दूलाल मिल गए. दोनों बेचारे साथी थे. पैसा खोकर के बंबई भाग्य की परीक्षा के लिए गए. शायद वहां तकदीर अजमाएं. स्टेशन पर उतरते ही वहां कोई ज्योतिषी मिल गया. बहुत लम्बा चौड़ा तिलक लगाया हुआ, भाग्य को धन्यवाद दिया कि सेठ साहब सुबह-सुबह आए एक दूसरे को देखने लग गए कि बहुत अच्छा. लम्बा चौड़ा कोट पहना हुआ था. देखते ही मालूम पड़ जाए कि करोड़ पति है. ह 269 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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