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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Ta www.kobatirth.org गुरुवाणी सास ससुर भी मर गये, मेरे पति देव की लाश लटक रही है. लोग क्या कहेंगे? मोहल्ले वाले ये सभी लोग कहेंगे कि डाकिन आई पूरे घर को हड़प कर गई. मैं कहां मुंह दिखाने जाऊं मेरे लिए संसार में अब रहा क्या है ? सत्यानाश हो गया. बोलने में ज़रा से अविवेक का कारण पूरा घर बरबाद हो गया, मैं अब यहां मुंह दिखाने लायक नहीं रही, पति की लाश नीचे उतारकर वह स्वयं भी लटक गई. परमात्मा महावीर के शब्द हैं. अगर जरा भी आपके अन्दर गम्भीरता नहीं रही. और परनिन्दा के आश्रय में आ गये. किसी आत्मा के मार्मिक बातों के गुप्त रहस्य का यदि आपने प्रकाशन कर दिया तो विवेक नष्ट हो गया समझो. उसका परिणाम उतना भयंकर अनर्थकारी हो सकता है. यहाँ पूरा घर पूरा परिवार साफ हो गया. आपका सुखमय संसार जल कर राख हो जायेगा. यह सब आत्मा के लिए अनर्थकारी होगा. जीवन के अन्दर गांठ बांध लें, ऐसी बात कभी नहीं करेंगे. कुटुम्ब की शान्ति के लिए, परिवार की शान्ति के लिए अपने आत्मकल्याण के लिए, यह गलत रास्ता में कभी नहीं अपनाऊंगा. किसी आत्मा की कोई ऐसी गुप्त बात उसकी आत्मा को आघात लगे. उसकी आत्मा को पीड़ा पहुँचे. कदाचित् ऐसा कथन आत्मा के लिए मौत का कारण बन जाये. अतः संकल्प करो कि ऐसी कोई बात मैं कभी नहीं करूंगा. ऐसी गम्भीरता हमारे अन्दर आनी चाहिये. इसलिये भाषा का गुण बतलाया. कार्य पतितम् यह वाणी का चौथा गुण है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बिना कारण कभी बोलना नहीं. स्तोकम् मधुरम् निपुणम् के बाद आज इस कार्य पतितम् की व्याख्या. जब कार्य की आवश्यकता हो तभी बोलना, बिना कारण बोलना अनर्थ का कारण बनता है. जो नहीं बोलने चाहिए. वह आप कभी नहीं बोलना. जब कार्य हो आवश्यकता हो तभी बोलना, · बहुत आदमियों की आदत हुआ करती है. बिना कारण बोलते रहेंगे. व्यर्थ ही इधर उधर की चर्चा करेंगे. बिना प्रयोजन इधर-उधर कीर्तिकथा से आपको मिलेगा क्या? कोई लाभ नहीं, सिवाय नुकसान के पर व्यक्ति की आदत है. मफतलाल बम्बई से दिल्ली आ रहे थे, रास्ते में दो तीन ऐसे ही मिल गये, समय कैसे निकालना, लम्बा रास्ता ठहरा, रास्ते में चर्चा चली, एक व्यक्ति ने पूछा "साहब! कहां जा रहे हैं?" उत्तर मिला 'दिल्ली' मैं भी दिल्ली जा रहा हूं." "आप कहाँ रहते हैं ?" "मैं जापान में रहता हूं, इन्डिया आया हूं. सोचा चलो देश हो आऊं इसलिए दिल्ली जा रहा हूं." दूसरे व्यक्ति ने कहा "मैं अमेरिका से आ रहा हूं" सब अपरिचित थे. एक दूसरे की बातचीत हुई. मफतलाल से उनमें से भी किसी ने पूछा कि "आप कहां से आ रहे हैं ?" वे आ रहे थे बम्बई से पर बोले, "कैनेडा गया था वहीं से आ रहा हूं." बड़ाई तो करनी चाहिये. कौन किसी को देखने आया है. कौन किसी का पासपोर्ट मांग रहा है. सभी को बैठे बैठे टाइम पास करना था. बात में बात निकली. एक व्यक्ति ने कहा "यार ! यह 259 For Private And Personal Use Only da 3R
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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