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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir % 3Dगुरुवाणी: मफतलाल हाथ लगाकर समझ गया कि इसमें तो एक बूंद भी घी नही गिरा है. कुछ गड़बड़ है. वह भी बड़ा होशियार था. सास से कहा कि जरा एक गिलास पानी तो लाओ. यह पानी मैं पी चुका, गला सूख रहा है, खिचड़ी से. सास बेचारी बाहर पानी लेने गई. इधर मफतलाल ने घिलौड़ी का पूरा घी उसमें डाल लिया. मफतलाल ने अपना काम पूरा कर लिया. सोचा अब रात आराम से निकलेगी. सास ने जब घिलौड़ी देखी तो उस का जीव एक दम अंदर हो गया. हाय-हाय आठ दिन पहले इतना घी अंदर था. सारा का सारा घी इसके अंदर जमाई खा जायेगा. आवाज दिया तीनों बच्चों को. जमाई राजा बहुत दिन से आए हैं. साथ बैठकर तो खाओ. ये मौका कब मिलेगा. सास ने देखा कम से कम मेरे तीनों बच्चे तो आ जाएं. । मफतलाल ने सोचा-मजदूरी मैंने की, इस नफा में फिर ये भागीदार हो गये. इतना रिस्क लेकर के काम किया फिर भागीदार. तो बैठे खाने. संयोग देखिये. इधर मफतलाल के सामने तीनो बच्चे थे. घी सब मफतलाल की तरफ आया हआ था थाली का. इस प्रकार से रखी थी. तीनों सालों ने विचार किया, यार उधर हाथ मारना तो ठीक नहीं. घी का तालाब भी उधर है. अपनी तरफ जो कुछ है नही. बड़े होशियार थे वे साले. एक लकीर खींची. उन्होंने कहा – क्या साहब. संवत्सरी जैसी संवत्सरी गई. एक भी क्षमापना का कार्ड नहीं. कम से कम एक पोस्ट कार्ड तो लिखना था. व्यवहार में इतना तो रखना था. दूसरे ने कहा-यार संवत्सरी तो गई. दीवाली भी गई. एक लकीर और खीची. तीसरे ने भी उसकी प्रकार का बहाना. कर तीनों तरफ से केनाल ऐसा बन गया और घी उधर चला गया. मफतलाल ने कहा-ये तो बड़े चतुर नजर आते हैं. इतनी मेहनत करके सब काम किया. ये मुफ्त में भागीदार बन गये. मफतलाल भी जबलपुर का था, कम तो था नहीं. उसने कहा यार होली दीवाली संवत्सरी जो है. वह सब आज ही समझ लो. उसने बराबर घुमाया. वे भी समझ गए. आपके संसार का यह नग्न परिचय है. पैसे की माया है, अगर पैसा है तो सब कुछ है और पैसा नहीं तो कुछ भी नहीं. परिणाम यह हुआ कि जैसे ही वह माल सामान लेकर वहां पर आया, उसकी स्त्री घबरा गई कि यह जिन्दा कहां से आ गया. इसे तो मैंने कुएँ में धक्का दे दिया था. तो मुंह में पानी आ गया और बहुत स्वागत करने लगी. पर मन से बड़ी भयभीत थी. कहीं मेरी बात न खोल दे, जो मौत बराबर है. परन्तु बड़े गम्भीर थे वह श्रावक, एक शब्द बोले नहीं. घर के अन्दर आए, ससुराल में दो दिन रहे. परिवार को लेकर चले. साथ में एक लड़का था. जो बाल्यकाल में छोटा ही था. अब थोड़ा बड़ा हो गया था. अपनी श्राविका को लेकर घर आए. बच्चे की शादी भी हुई. एक दिन ऐसा संयोग हुआ कि जब भोजन कर रहे थे, वहीं थाली में बैठे-बैठे. कोई सूर्य की किरण उसकी आंख पर पड़ी, पास में स्त्री थी, घरवाली ने देखा मेरे पतिदेव को कष्ट हो रहा है. अपना पल्ला लेकर ढांकने लगी. ताकि सर्य की किरण इसकी आंख पर न पडे. 256 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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