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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी: कबीर ने कहा “तुमने मेरी भाषा के रहस्य को नही समझा. शब्द कठोर हैं. पर उनमें मेरे जो भाव हैं, वे बड़े कोमल हैं." कवियों के भावों को समझना बहुत मुश्किल है. मुझे नही मालूम कि मेरे आश्रम के अंदर यदि सुख का प्रवेश हो जाए तो मैं उसका स्वागत कैसे करूंगा? कबीर ने अपनी भाषा में ठीक कहा. आप भी समझ लेना. जिसकी आप माला गिनते ही छोड़ देना. कबीर ने कहा. सुख के माथे सिल पड़ो, जो प्रभु दिया भुलाय. बलिहारी उस दुख की जो बार-बार प्रभु सुमिराय. समझ गए मेरी बात? नही समझे? सुख के माथे पत्थर पड़ो, जिसने प्रभु दिया भुलाय. अरे तुम क्या समझते हो? मेरे आश्रम में यदि सुख आ जाए तो पत्थर लेकर उसके माथे में दे मारूँगा क्योंकि वह भगवान को भुला देता है. “यहाँ सारे दिन प्रभु के समिरण की रटन चलती है, कितना महान उपकार है उस दुख का. इसलिए मैंने तुझे आशीर्वाद दिया, इसी में तेरा आत्म कल्याण होगा. सुख की बात छोड़ दे. दुख का स्वागत कर." आएगी ये भाषा समझ में? आज तक हमारे जीवन में जो है, वह दुख का ही उपकार है, जैन तात्विक दृष्टि से यदि देखा जाए. हमारे जीवन का आदिकाल प्रारम्भ होता है. निरोग अवस्था में से यह आत्मा जन्म और मरण करती है. एक भयंकर दर्द और वेदना से भरा हुआ वह जीवन, वह योनि निरोगावस्था है, वहां से इतना दुख सहन करके अनादि अनन्त काल में हमारा यह क्रमिक विकास हुआ है. भूतकाल का सारा इतिहास दुख और दर्द से भरा हुआ इतिहास है. इतना कष्ट सहने के बाद इष्ट की यह प्राप्ति हुई है. वर्तमान जीवन मिला है. इसमें हम भूतकाल के दुख को भूल गए है. वहां कोई धर्म क्रिया का साधन नही था. अनिच्छा से दुख को सहन किया और उसकी कृपा से कर्मक्षय हुआ, निर्जरा की और मानव जीवन तक आये. यहा आकर उस परम मित्र को भूल गए जिसने यह उपकार किया. आपको इस मानव जीवन तक पहुंचाया. __अगर दुख नहीं होता तो वर्तमान का यह सुख भी नहीं मिलता. भूल गए हैं यह आप! आगम में आई घटना की बात चल रही थी. ऐसा वातावरण बन गया था उस घर के अन्दर पैसे का, दानापानी का, अभाव और भाव जानते ही हो आप. दुख से घिरा हुआ जीवन था मफतलाल का. ऐसी परिस्थिति में घरवाली ने भी उपदेश देना शुरू कर दिया. बेचारा क्या करे लाचार था, परिस्थिति का लाभ लेते हैं. मन में एक निर्णय किया कि विदेश जाकर वह कुछ उपार्जन करे. कुछ धन-उपार्जन करे. इस भावना के साथ घर से निकला... स्त्री साथ में थी. छोटा सा गोंदी का बालक था. पैसा ऐसी चीज है, उसका आर्कषण ही अलग होता है. नाम रखने से कुछ नही होता. यहाँ तो पैसा चाहिए. काम चाहिए. यह PU BIA 253 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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