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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी मन में जरा चंचलता आई. विकृति आ गई. भाव में आवेश का प्रवेश हो गया. योगी पुरुष ने विचार किया कि आज यहाँ आस पास का वातावरण कुछ दूषित नजर आता है. __मेरे ध्यान में, साधना में, चित्त की एकाग्रता में यह व्यग्रता कैसे आ गई? मेरे भाव के अन्दर आज आवेश का प्रवेश कैसे हो गया? जरूर कहीं आस-पास दुषित वातावरण हुआ होगा. निरीक्षण किया. आत्म गवेषक व्यक्ति बड़ा जागृत रहता है. निरीक्षण के बाद उनको मालूम पड़ा, किसी व्यक्ति की लाश लाकर कोई वहाँ डाल गया है. जंगल के भूखे प्राणी वहाँ आ गये. लाश को सूघंने लगे. वन्य प्राणियों में सियार को बड़ा चालाक माना जाता है. कहावत में जंगल का राजा सिंह बताया जाता है, उसको एक दिन ऐसी धुन सवार हुई कि जितने भी उसके दरबार में प्राणी थे, सभी को बुलाया सिंह के आमन्त्रण को कौन अस्वीकार करे, सभी आये. एक-एक को बुलाकर उसने कहा कि हमारे किसी साथी ने कहा है कि तुम्हारे मुंह से बड़ी दुर्गन्ध आती है. बास आती है. क्या यह सच है? मुझे मेरी दुर्गन्ध मालूम नहीं पडती तम संघो तो? बेचारे बकरी वगै ह सब आये. आकर संघने लगे. मुंह तो गटर है. दुर्गन्ध तो आयेगी ही. वैसे ही उन्होंने वहाँ कह दिया. हाँ हजूर, जो आपने कहा वह बिल्कुल सच है. आपके मुंह से जरा दुर्गन्ध तो आती है. बड़ा अप्रिय लगा सिंह को वह शब्द और उसने उसी समय उन पर आक्रमण किया और उन्हें मौत के घाट उतार दिया. जितने भी जानवर वहां आये थे, सबके साथ इसी प्रकार का व्यवहार हुआ. सियार सावधान था, जब उसका नम्बर आया और उसे बुलाकर पूछा कि जरा बताओ तो सही कि यह दुर्गन्ध मेरे मुंह से आता है या नहीं? ये जानवर तो इस प्रकार कह कर गये हैं. तुम बताओ कि सत्य क्या है? सियार ने कहा "हजर! आपका आदेश मझे शिरोधार्य है, परन्त मझे जोर की सर्दी लगी हुई है. जुकाम लगा है. नाक काम नहीं करती. मैं सूचूं तो भी खुशबू या बदबू मालूम नहीं पड़ती". इस तरह वह बच गया. वह अपनी होशियारी से, वाणी की चतुराई से बचा अन्य जिनते भी आये सब मौत के घाट उतर गये, सियार का यह कहना कि “मुझे सर्दी लगी है. मालूम नहीं पड़ता दुर्गन्ध है या सुगन्ध." उसकी चतुराई थी.. ___ सियार जब उस लाश के पास में आया और सूंघ कर देखने लगा. उसकी दृष्टि भी वहाँ पर गई. उसे मालूम पड़ा कि सियार आया है. वह इस लाश को खायेगा, भक्षण करेगा. दूर से ही योगी पुरुष ने अपने अन्तर की करुणा से कहा रे रे मुञ्चक मुञ्च सहसा, निचस्य निंद्यवपुः योगी पुरूष ने दूर से देखकर उस सियार से कहा कि अवश्य ही तुमने पूर्व जन्म में कोई ऐसा अपराध किया होगा जिसका वह वर्तमान परिणाम है. इतनी निकृष्ट योनि में, पशु योनि में तुम्हारा जन्म हुआ है. यदि अब तुमने ऐसे गलत व्यक्ति की लाश को खाया तो भविष्य में तुम्हारी क्या गति होगी? यह भयंकर पापी आत्मा है, जीवन में कभी 243 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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