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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra गुरुवाणी से - क्या करें, कोई पूर्व कर्म का संयोग, सास ऐसी मिली फिर भी मां के रूप में मैंने स्वीकार किया. परंतु कहां तक सहन करूं, कभी न कभी तो मैं बोल जाती हूं और बोलते ही दोषी बन जाती हूं. उनका आवेश पूरे दिन वह रेडियो चलाता रहता है. बिना बैटरी का सुनना पड़ता है ही. www.kobatirth.org स्त्रियों की एक आदत है, उस जाति का एक दोष है. सहनशीलता का गुण कम होता है. पुरुष ज़्यादा सहन कर सकता है. वह नहीं कर सकती. - घर के अंदर सास बहू थी. और अचानक बहू कहीं नई आई पढ़ी लिखी होती है, बड़े शहरों की दिल्ली जैसी, अब बेचारे गांव के अंदर एकदम चौथे आरे की सतयुग की मां थी. सास मां तुल्य थी, अब कोई न कोई ऐसा कारण आ जाता है, तो घर की मर्यादा, घर का व्यवहार कहना पड़ता. घर की बड़ी थी, मां तुल्य थी. सास बेचारी बहुत सहन करती की भी तो मर्यादा होती है. सास ने बहू से एक दिन कुछ कहा तन गई. मैं तो एम. ए. हूं. बहुत पढ़ी-लिखी हूं. सास कहां पढ़ने गई थी ? प्राइमरी ऐजुकेशन भी नहीं है. दुनिया कहां जा रही है ? सास को पता भी नही है. बहू को जरा पढ़ाई का घमण्ड था. सम्पन्न घर से आई थी, तो पैसे का अजीर्ण था. घर के अंदर सारा वातावरण एकदम गन्दा कर दिया. फिर भी बच्ची है, उम्र नही है अपरिपक्वता है पर सहन करने " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घर के अंदर व्यवहार से भी घर का सब काम करना पड़ता है. चूल्हा भी फूंकना पड़े. रोटी भी बनानी पड़े. बहू ने देखा कि यहां सब कुछ करना पड़ेगा, मजबूरी है. सासू अवस्था में हैं और नहीं करे तो आस-पास के लोग ताना मारेंगे. कैसी बहू आई है, सेठानी बन कर के आई है. घर का काम नहीं करती क्या शरीर को लकवा मार गया है ? " उसने एक नया रास्ता निकाला. जैसे ही रसोई बनाने का टाइम हो वह एकदम वहां पर बेहोश हो कर के गिर जाए. बेचारा पति विचार में पड़ गया. पति भोलेनाथ जैसा था. इधर जाए, उधर जाए, डाक्टर के पास गया, वैद्य के पास गया, पूरा गांव खोज लिया. कोई इलाज हो नहीं, बीमारी हो तो इलाज हो बीमारी तो मन की थी. देखा, चलो चूल्हा फूंकने की झंझट तो मिटी जैसे ही रसोई तैयार हो जाए. एकदम बिल्कुल ठीक, खाने के समय कोई बीमारी नहीं. 233 तो लोगों ने कहा यह तो हवा का प्रकोप है. कुछ न कुछ गड़बड़ी है. वह भी ऐसे ही नाटक करती. अभिनय तो ऐसा होता है कि वास्तविकता जैसी नज़र आए. असल हीरे से भी आर्टीफिशियल हीरे में चमक ज्यादा होती है अभिनय के अन्दर- वास्तविकता का दर्शन ज्यादा होगा. यह मनोवैज्ञानिक सत्य है. जैसे ही वह गिरती और माथा धुनने लगती. निश्चित हो गया कि कुछ हवा का प्रकोप है. और यह बहू को हैरान कर रहा है, कोई बाहर की हवा है, अब झाड़ा फूंकी दिलाना शुरू किया. For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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