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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी - बुद्ध ने पहले जैन दीक्षा ली. उसके बाद स्वतन्त्र मत उन्होंने चलाया. स्वयं बुद्ध ने अपने आगम सत्रों के अन्दर अपने जीवन-चरित्र का इस प्रकार परिचय दिया. हमारे यहां भी ग्रंथों में यही वर्णन आता है. महावीर से उम्र में बीस वर्ष बडे थे. जहां तक महावीर ने कैवल्यज्ञान प्राप्त नहीं किया, वहां तक पार्श्वनाथ का शासन चलता था. जब कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ उसके बाद, परमात्मा महावीर का शासन प्रारम्भ हुआ. बुद्ध बीस वर्ष बड़े थे. उस समय पार्श्वनाथ का शासन चलता था, इसीलिए पार्श्वनाथ के अनुयायी श्रावक कहलाए. उन्होंने पार्श्वनाथ भगवान की परम्परा में उनके मुनियों के पास दीक्षा ग्रहण की. इतिहास की बहुत सी कहानियां आपको मालूम है. बहुत सारी ऐसी बातें हमारे यहां से वहां बौद्ध दर्शन में गईं. शब्द प्रायः मिलते-जुलते मिलेंगे. आचार के अन्दर काफी समानता आपको मिलेगी. एकमात्र सिद्धान्त की दृष्टि से भेद आपको नजर आएगा. उस समय पर बुद्ध के पास आकर वह व्यक्ति हर रोज गालियां देता, आवेश में आकर एक दिन उनके मुंह पर थूक कर के चला गया. बुद्ध एकदम शान्त रहे. राज पुत्र थे. गर्मी आ सकती थी, ज़रा भी नहीं. ज़रा भी उत्तेजना नहीं, थूकने वाला व्यक्ति थक गया. लौट कर के दूसरे दिन आया. मन में इतनी ग्लानि आई, इतनी पीड़ा हुई. कैसा महान संत है. युवा अवस्था राजकुमार जैसा चेहरा. क्या साधना का अपूर्व तेज, शील का सौंदर्य, मैंने उनके साथ आज तक बड़ा गलत व्यवहार किया. हमारे गांव में ये महापुरुष आए अपनी साधना में मग्न रहने वाले. मैंने जाकर उनके साथ बड़ा गलत व्यवहार किया. मैं जाकर क्षमा याचना कर के आ जाऊं. बुद्ध के शिष्यों ने जरा आवेश में आकर बुद्ध से पूछा - यह आप क्या कर रहे हो. सामने वाला व्यक्ति थूक कर चला गया. कोई हर्ज नहीं उस बेचारे के पास शब्दों की कमी थी. इसलिए बेचारा थूक कर के चला गया. अब उनके पास कोई शब्द नहीं रहा. ग्लानि से भर गया. ग्लानि से भर कर के वह आत्मा आई. यह प्रेम का परिवर्तन था. हृदय से परिवर्तन आया. और क्षमा याचना की. बुद्ध ने कहा - इसमें क्षमा याचना की क्या बात तुम मेरे पास कोई भेंट लेकर के आओ. मैंने स्वीकार नहीं की तो वस्तु तुम्हारी तुम्हारे पास. आप कोई चीज लाएं, मैं स्वीकार न करूं तो वस्तु पर अधिकार किसका? देने वाले का. मैंने स्वीकार ही नहीं किया. अरे, तुम गाली रूपी भेंट मेरे पास लेकर के आए. मैं तो मौन रहा स्वीकार ही नहीं किया, ध्यान ही नहीं दिया, तो चीज तुम्हारी तुम्हारे पास. मुझे क्या लेना देना है. __ मन को समझा दीजिए टेलीफोन आता हो. अगर कोई व्यक्ति फोन पर अपना गुस्सा उतारता हो, नहीं बोलने जैसा बोलता हो. आप मौन रहिए, उसको बोलने दीजिए. पांच मिनट दस मिनट उसे बोलने दीजिए. आदमी कषाय को ज्यादा समय तक नहीं रख सकता. MPUR all 230 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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