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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी ___ 'परोपदेशे पाण्डित्यम्.' मैं बहुत सुन्दर बड़ा जानकार हूं. और दूसरे सब गलत कर रहे हैं. यह जो व्यक्ति के मन में कुण्ठित भावना आती है. उसी का परिणाम शब्दों के अन्दर से जहर निकलता है. सामने वाला व्यक्ति अगर ग्रहण न कर पाए, योग्यता का अभाव हो. उसकी प्रतिक्रिया बड़ी गलत होती है. वह स्वयं को सहन करना पड़ता है. झुकना पड़ता है. भगवन्त के समय भी बहुत-से परमात्मा के विचार का विरोध करने वाले व्यक्ति हुए थे. परमात्मा महावीर का सिद्धान्त उन्हें प्रिय नहीं था. ऐसे एक नहीं तीन सौ तिरसठ विचार धारा के लोग-धर्मात्मा उस समय विद्यमान थे. अलग-अलग प्रकार से विचारों का विरोध करते थे. भगवन्त ने जो सत्य था जगत के समक्ष रखा, परन्तु उनके शब्द में जरा भी दुर्गन्ध नहीं आयी. ज़रा भी उन शब्दों के अन्दर उनका मानसिक क्लेश नजर नहीं आया. दार्शनिक विचार धारा को लेकर के विरोध चल रहा था. हर व्यक्ति का विरोध हुआ. किसका नहीं होता है? परन्तु भगवन्त ने अपने आदर्श को छोड़ा नहीं. सबके समक्ष अपना आदर्श प्रस्तुत किया. इतने भयंकर वातावरण में अनेकान्त दृष्टि देकर के जगत् को समन्वय का रास्ता बतलाया. परन्तु भगवन्त ने कभी अपने मुख से यह नहीं कहा कि तुम गलत कर रहे हो. जो सत्य था सामने रखा, अन्धकार को दूर करने के लिये यदि आप फायरिंग करेंगे, तो अन्धकार नहीं जाएगा. तलवार से अन्धकार को काटने का प्रयास करें तो सफलता नहीं मिलेगी. जरा सा प्रकाश उत्पन्न कर दीजिए. अन्धकार स्वयं चला जाएगा. अनादि अनन्त काल से मिथ्यात्व की ग्रंथि आत्मा के साथ बंधी हुई है. वर्षों से क्लेश का संस्कार लेकर आए. जरा-सा प्रेम उत्पन्न कर दीजिए, क्लेश स्वयं चला जाएगा. परमात्मा ने जगत् को विचार का प्रकाश दिया, अंधकार चले गए. अहंकार अभिमान को लेकर आने वाले इन्द्रभूति परमात्मा की विचारधारा के प्रबल शत्रु, के मन में ज्ञान का अजीर्ण था. परमात्मा ने आते ही उनका तिरस्कार नहीं किया, भगवन्त ने यह नहीं कहा था तू मेरा विरोधी है. तू दुराग्राही है, तू गलत है मैं तेरे-से बात करना भी पसन्द नहीं करूंगा. जरा भी प्रभु ने कोई ऐसा रास्ता नहीं लिया जो गलत हो. आते ही बडे प्रेम पूर्वक संबोधित किया, आओ इन्द्रभूति! वही आन्तरिक स्नेह, वही वात्सल्य, परमात्मा की आन्तरिक करुणा बरसी. इन्द्रभूति मन में विचार करता है कि जीवन में पहली बार इस महापुरुष के पास आया हूं. आज तक इनका मेरे साथ कोई परिचय नहीं, कभी साक्षात्कार नहीं हुआ. किसी प्रकार की मुलाकात नहीं हुई. फिर भी प्रभु ने मेरे नाम से मुझे संबोधित किया. ___ मन में विचार आया कि जगत् में मुझे कौन नहीं जानता. सारी दुनिया मुझे जानती है. हो सकता है महावीर भी जानते हो. इसीलिए मेरे नाम से पुकार करके कहा. परन्तु - 221 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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