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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गुरुवाणी होगी. मैं उसे प्राप्त करूं? उसका ममत्व होगा. या कहीं से प्राप्ति की संभावना है तो व्यक्ति का अनुराग होगा. परन्तु अनुराग विकार और विषयों से भरा हुआ रहेगा. शुद्ध नहीं मिलेगा. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जहां जिस पदार्थ का अनुराग होना चाहिए उस अनुराग का अभाव मिलेगा. अनुराग आत्मा के प्रति अनुराग परमात्मा के प्रति अनुराग हमेशा किसी व्यक्ति के गुणों के प्रति होना चाहिए. यदि इस प्रकार का अनुराग आ जाए तो आत्मा के अन्दर गुण विकसित हो जाए और उसे विकसित कैसे किया जाए? इस सूत्र के द्वारा परिचय दिया गया है: यह सूत्र है. गुणों का अनुराग यदि प्राप्त करना है. जगत् के व्यक्तियों का यदि प्रेम और सद्भाव प्राप्त करना है. जीवन को यदि आप प्रेम का मन्दिर बनाना चाहते हैं तो इस सूत्र को याद कर लेना पड़ेगा. सारे जगत् के क्लेश का यही कारण है. बोलने में उन शब्दों में विवेक का अनुशासन नहीं रहा. संयम की मर्यादा नहीं रही और इसी कारण, वाणी में जो अन्तरात्मा की साधना की सुगन्ध आना चाहिए, उस वाणी में जो प्रेम का आकर्षण आना चाहिए, वह नहीं आ पाता. वाणी का व्यापार पुण्य का लाभ देने वाला होना चाहिए. सारे जगत् की आत्माओं से मैं प्रेम करूं. वाणी की क्रिया के द्वारा जगत् की आत्माओं का सद्भाव मुझे मिले. सारे जगत् के अन्दर क्लेश का यही जन्म स्थान है. यहीं से संघर्ष शुरू होता है. विश्व के जितने भी भयंकर युद्ध हुए और उसका मुख्य कारण यदि आप गहराई से जाकर देखें, वाणी का दोष है. वाणी के विकार का कारण था, विनाश की तरफ ले गया. भयंकर से भयंकर महाभारत का युद्ध हुआ जो भारत के इतिहास की एक ऐसी घटना है. एक सामान्य वाणी के विवेक का अभाव इतने बड़े संघर्ष का कारण बन गया. नहीं तो कौरव और पाण्डवों में कभी इस प्रकार का युद्ध नहीं होता. बहुत बड़ा सुन्दर राज प्रासाद निर्माण किया पाण्डवों ने और उस राज प्रासाद में अपने भाई कौरवों को आमन्त्रित किया. जैसे ही उनके आमन्त्रण से कौरवों का आना हुआ. उसका जो फर्श था, वह इतना शानदार था कि देखने में दृष्टि में भ्रम पैदा कर देता. जैसे ही कौरव वहां आए सुन्दर राज प्रासाद देखकर के बड़े प्रसन्न हुए भाइयों का आमन्त्रण मिला अपनी प्रसन्नता लेकर आए थे. अन्दर जैसे ही उन्होंने कदम रखा, चौगान के अन्दर आए, मकान का फर्श ऐसा बना हुआ था, ऐसा दृष्टि में भ्रम पैदा कर दिया, उन्हें मालूम पड़ा इस फर्श के अन्दर जल होना चाहिए. उस भ्रम को देखकर जितने भी वहां पर कौरव आए थे, उन कौरवों ने अपनी धोती ऊंची की. कपड़े ऊंचे किए ताकि ये कपड़े पानी में भीग न जाएं. वास्तविक वहां पानी नहीं था. वह एक प्रकार का भ्रम था. आप रेगिस्तान में जाते हैं दिन के समय सूर्य की रोशनी में एक भ्रम ऐसा पैदा होता है जैसे कि जल आपको दृष्टि से यह आभास होगा कि वहां पर पानी है परन्तु वहां 203 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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