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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra राज बहिष www.kobatirth.org गुरुवाणी हमारे यहां का इतिहास गौरवपूर्ण है. लोगों ने अपनी श्रद्धा के लिए प्राण दे दिये, पर श्रद्धा से कभी विचलित नहीं बने. उस कवि का बड़ा शालीन परिवार घर के अन्दर था, लोग सांत्वना देने गये. उसका ही बाद में पुत्र भी मारा गया. लोग घर में बच्चों को सांत्वना देने गये. परन्तु उसका बेटा शेर की सन्तान भी कैसी ! गर्जना भी उस लड़के की कैसे थी कि जैसे ही लोगों ने कहा हम तो सांत्वना देने आये, तुम्हारे पिता की इस प्रकार दुखद मृत्यु हो गई. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वह कहता है मेरा बाप मरा नहीं वह आज भी जीवित है. उसकी श्रद्धा और आत्मसम्मान आज भी कायम है. अपने पिता की मृत्यु का बड़ा सुन्दर वर्ण न उसने कवि की भाषा में किया: देवन को दरबार भयो तब पिंगल छन्द बनाय सुनायो, काऊ से अर्थ दियो न गयो तब नारद ने परसंग बतायो, मृत्यु लोक में गंग कवि है, ताहि को नाम सभा में बतायो, चाह भई परमेश्वर की, तब गंग को लेन गणेश पठायो । (देवन को दरबार भयौ, तब पिंगल छन्द बनाय सुनायो) भरे दरबार में किसी देव पिंगल नाम का छन्द बनाकर वहां सुनाया. मेरा बाप पिंगल छन्द का सम्राट था. उसका प्रभुत्व था. उसके मुकाबले इस छन्द की रचना सुनाने वाला कोई भी उस समय नहीं था. जब पिंगल नाम के छन्द का वहां पर पठन किया गया तब "काऊ से अर्थ दियो न गयौ तब, नारद ने परसंग बतायो" जब वहां कोई उसका अर्थ व्यवस्थित रूप से नहीं कर सका, तब नारद जी ने परमेश्वर से कहा. भगवन्,“मृत्यु लोक में कवि गंग है ताहि को नाम सभा में बतायो"; मृत्यु लोक के अन्दर गंग नाम का एक महान कवि है. वह पिंगल छन्द सम्राट है. अगर उसके मुख से इसके अर्थ का श्रवण किया जाय तो आपको बहुत सन्तोष मिलेगा. बड़ा अपूर्व आनन्द आयेगा. " चाह भाई परमेश्वर की, तब गंग को लेन गणेश पठायो " जब परमेश्वर के मन ऐसी इच्छा पैदा हुई, कि मैं कवि गंग के मुख से इसका अर्थ श्रवण करूं, तब गणेश को आदेश मिला और वह हाथी के रूप में आये तथा मेरे बाप को लेकर स्वर्ग गये. हमारे देश का अपूर्व इतिहास इस प्रकार का है. श्रद्धा के लिए प्राण अर्पण कर दिये परन्तु उसमें जरा भी प्रलोभन नहीं आया. ऐसे व्यक्तियों का जीवन प्रसंग हमारे सामने परन्तु आश्चर्य का विषय है कि हमारी श्रद्धा ही नहीं है. हैं बम्बई में एक व्यक्ति दलाली का काम करने वाला था. नमस्कार महामन्त्र के प्रति उसमें अपूर्ण विश्वास था. घर से बाहर निकलता तो परमेश्वर का स्मरण करके के निकलता. 191 For Private And Personal Use Only ह
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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