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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी जन्म ले ले, और वह प्रेम पूर्वक अपने परमात्मा तथा उसके उपकार का स्मरण करें इस प्रकार की मंगल भावना आनी चाहिए. देते समय मन में यह विचार आना चाहिए कि देकर हम किसी पर उपकार नहीं करते हैं. यह मेरी आत्मा के लिए है और मैं स्वयं इसके द्वारा कुछ प्राप्त करता हूं. यह भावना जिस दिन आपके अन्दर आएगी उस दिन पुण्य का दुष्काल नहीं रहेगा. आप यदि देते हैं तो निश्चित आपको मिलेगा, यह विश्वास रख कर के चलिए. इन्वेस्टमैंट तो पहले करके चलना पड़ेगा. व्यापार करते समय लाखों रुपया उधार लाकर पहले आप लगाते हैं, तब वह बाद में लाभ का कारण बनता है, तब वह प्राप्ति का साधन बनता है और वहां यदि पहले दान ही नहीं दे और कहें-नहीं महाराज, पहले ही लाभ दिखलाओ, तो यह कदापि संभव नहीं है. धन और संपत्ति के विषय में ज्ञानियों ने कहा है कोई ऐसा साधन नहीं है. कभी ऐसा प्रसंग आ जाए कि स्टीमर में आप यात्रा कर रहें हों और अचानक तूफान आ जाए, और जिस नाव या स्टीमर में आप बैठे हों उसका संतुलन ठीक करने के लिए नाविक या कैप्टेन आपको अपना कीमती सामान खाड़ी में फेंकने को कहे तो आप अपने प्राणों की रक्षा के लिए उसे फेंक देंगे. संसार में आपको इसी तरह त्याग भावना से रहना है. आपने नाव को देखा है, पानी में रहती है पर कभी डूबती नहीं है. वह पानी के ऊपर होती है. पर नाव के अन्दर यदि पानी आ जाए तो निश्चित डुबा देगा. यह जीवन नौका है. संसार सागर की इस नाव पर भाई आत्माराम यात्रा कर रहे हैं. लक्ष्य है मोक्ष तक इस जीवन नौका को पहुंचा देना. जहां तक संसार सागर में नौका ऊपर है, वहां तक कोई खतरा नहीं. कितना ही आंधी तूफान क्यों न आ जाए. परन्तु याद रखिए, इस जीवन-नौका में सांसारिकता नहीं घुसनी चाहिए. अगर सांसारिकता का जल इस जीवन-नौका में आ गया तो वह इसे निश्चित डुबा देगा. मन में संसार का प्रवेश नहीं होना चाहिए. जिस दिन आप यम-नियम के द्वारा इसकी वैल्डिंग कर लेंगे कि संसार का प्रवेश मेरे जीवन में न होने पाए, जीवन का उद्धार हो जाएगा. सहज में जीवन के लक्ष्य को आप प्राप्त कर लेंगे. इसीलिए इस सूत्र पर चिन्तन करके इसके आगे जो सूत्र बतलाया है, वह और भी इसके रक्षण के लिए ज्यादा सुन्दर हैं. ___“कृतज्ञता" उस महान आचार्य ने कहा कि हर व्यक्ति को कृतज्ञ बनना चाहिए. किसी व्यक्ति ने आपके ऊपर उपकार किया हो, या हम ने कभी किसी व्यक्ति से कुछ प्राप्त किया हो, तो उसके प्रति कृतज्ञता होनी चाहिए. उपकारी के उपकार का स्मरण करना, उसके प्रति सदभाव का अर्पण करना, उनके गुणों को स्मरण करना कृतज्ञता है. VAL, 404 175 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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