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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra J www.kobatirth.org गुरुवाणी: आज और धर्म कल करना है. पाप रोकड़ में करना है और धर्म को बाकी उधार रखना है. यह हमारी आदत है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कहां से आत्मा को आरोग्य मिलेगा. आत्मा में बीमार दुर्विचार, विषय और कषाय का क्षय रोग (टी.बी) लग जाए, प्रमाद और कषाय आ जाए, उस समय पर उपचार के लिए हमारे पास कोई तैयारी नहीं. हम कहते हैं कि देखेंगे फिर कभी कर लेंगे. इस प्रकार के प्रमाद से हमारा जीवन जर्जरित हो चुका है. जीवन का जीर्णोद्धार कर लेना है. इसका पुनर्निर्माण कर लेना है. भूल हो गई. उसकी चिन्ता नहीं. परन्तु उस भूल का पुनरावर्तन नहीं होना चाहिए. भूल का प्रतिकार हमें संकल्पपूर्वक कर देना है. इस प्रकार की भूल में हमने जीवन के अनादिकाल व्यतीत कर दिए. अब हमारा भविष्य हमें नहीं बिगाड़ना है. अपने को वर्तमान में उपस्थित रहना है पूर्ण जागृति के द्वारा हमें अपनी साधना से उस सफलता को प्राप्त कर लेना है. इसीलिए आत्मा के उस उपचार के लिए आचार का पथ बतलाया गया है- शिष्टाचार. इस प्रकार से यदि आचार का पालन किया जाए और उसके साथ यदि परमात्मा का नाम स्मरण किया जाए तो कोई समस्या नहीं रहेगी. समस्या तो हम स्वयं पैदा करते हैं. सारी समस्या मन से पैदा होती है और अपनी आदत की विवशता, हम समाधान बाहर खोजते हैं, समस्या मन के अन्दर पैदा हुई और समाधान दुकान, मकान, परिवार, स्त्री, पुत्र अथवा पैसे में खोजते हैं कि शान्ति मिलेगी? अशान्ति अन्दर से पैदा हुई और शान्ति हम बाहर से खोजते हैं जो चीज आपने अपने घर में खो दी हो अगर आप उसे जनपथ पर खोजें तो क्या होगा ? घर में अन्धकार है और आप बाहर खोजने जाएं तो दुनिया क्या कहेगी कि भाई जो चीज़ तुमने घर में खो दी है उसे घर में ही खोजो. प्रकाश में उसे खोजो. अशान्ति तो हमारे मन से पैदा हुई अज्ञान दशा में आत्मा के इस परमतत्त्व को हम समझ नहीं पाये. वैभाविक दशा के अन्दर, मात्र कल्पना के उस भ्रम में हम भटकते रहे. पर के अन्दर स्व की आसक्ति लेकर के चलते रहे पर को प्राप्त करने का प्रयास किया तो वह पीड़ा का कारण बना. पर की अप्राप्ति से आत्मा में जो असन्तोष आता है, वही पीड़ा का कारण बन जायेगा. दर्द उत्पन्न करेगा और उस बेचैन अवस्था में हम शान्ति के लिए प्रयास करते हैं. कहां और किधर मिले? कुछ मिलने वाला नहीं, कभी मिलने वाला नहीं जीवन उसकी खोज में चला जाता है. परन्तु आज तक वह शान्ति हमें मिली नहीं. हम आदत से मजबूर हैं. समस्या मन से पैदा होती है और हम उसका समाधान प्राप्त करने के लिए दुकान में जाते हैं, मकान में जाते हैं. पर को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं. वह नहीं देखता 163 For Private And Personal Use Only ि ME
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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