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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra S www.kobatirth.org गुरुवाणी: काम आ जाए. अगर खाएं- पीएं मज़ा करें तो कई बार ऐसी समस्या आती है कि समाज के लिए उनका जीवन कलंकित बन जाता है. एक अपराधी बन करके यहां से परलोक जाते हैं. वर्षों पहले बम्बई के एक निर्धन परिवार की घटना है. एक परिवार का मुखिया बहुत बड़ा जुआरी था. जैसा कि आपको बताया कि गलत संसर्ग में जाकर व्यक्ति विनाश को प्राप्त होता है. वह जुआरी भी अपना सब कुछ गंवा बैठा और अन्त में उसने मृत्यु का आलिंगन किया. पूरे परिवार के लिए उसका जीवन श्राप बन जाता है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सट्टा में सब कुछ बर्बाद कर दिया, साफ हो गया. बहुत गरीबी से पीड़ित वह परिवार अकेली मां सारे परिवार का भार वहन करती. बच्चों का लालन-पालन करना, पड़ोस में जा कर के बर्तन मांज कर के आती. कपड़ा सी कर के बड़ी मुश्किल से अपना जीवन निकालती दो बालक, एक बच्ची और एक बालक बालक को मां ने पहले से ही यह संस्कार दिया. मां ने कहा! बैटा, जीवन में अपनी पवित्रता और ईमानदारी नहीं जानी चाहिए, पैसा तो आता जाता रहता है तेरे पिता ने भूल कर दी. इसका यह मतलब नहीं कि अपने कुल 'की परम्परा चलाएं. बेटा जीवन के अन्दर यह पवित्रता कभी नष्ट नहीं करना । अचानक मियादी बुखार हुआ. मां बीमार पड़ी और ऐसी परिस्थिति में घिर गई कि घर के अन्दर कोई साधन नहीं, ग्यारह बरस का बालक और नौ बरस की उसकी छोटी बहन, और परिवार में कोई नहीं, परन्तु बालक धर्म संस्कार से पूर्ण था मां के विचारों से बहुत प्रभावित था. मां ने कहा था कि कभी भूल कर भी गलत रास्ता नहीं अपनाना, सत्य का आश्रय नही छोड़ना, जीवन है, उतार-चढ़ाव आएंगे कदाचित कोई ऐसी परिस्थिति आ जाऐ तो भी, पेट के लिए भी, कोई पाप नहीं करना. बड़े कोमल हृदय का बालक. शब्द को पकड़ लिया और उसके अनुसार, उसका आचरण. मां की स्थिति बहुत नाजुक हो गई. बालक बैठा-बैठा सोचता है कि मैं क्या करूं. घर में पैसा नहीं. मां तो रोज़ मज़दूरी करके शाम को पैसा ले आती. अब क्या किया जाए. कोई उपाय पास नहीं था. मां के प्रति आदर और सेवा की भावना कि मां के इस दर्द में मैं कैसे सहायक बनूं पड़ोस में एक मुसलमान भाई रहता था फल- फ्रूट का बिज़नेस करता था और यही वैशाख का महीना था, आम का मौसम था. वह बालक निर्दोष भाव से कहता है बड़े मियां! एक काम करोगे, बोला क्या ? मुझे थोड़ा-सा आम दे दो, मैं बाजार में बेचूंगा. थोड़ा-बहुत उससे आमदनी हो जाएगी. अपनी मां के लिए दवा लाऊं, उसकी सेवा कर सकूं इतना ही पैसा मुझे चाहिए, उसकी अन्तर्भावना, कोमलता देखिए. वह बालक टोकरी लेकर जाता है, कितना प्रसन्न होता है, परन्तु दिन के ग्यारह बज गए लोग आते हैं. जाते हैं, वह तो बम्बई शहर है. किसी ने ध्यान भी नहीं दिया. बालक ग्यारह बजे विचार में पड़ गया कि अभी तक मैंने मां को दूध नहीं दिया, — 146 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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