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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी था. वह शर्म और लज्जा ऐसी चीज़ थी कि चाहते हुए भी पाप का आचरण नहीं हो सकता था. अब बाहर जाने के बाद कोई रुकावट नहीं रही. इस सारी व्यवस्था को भंग करने का परिणाम यह हुआ कि जीवन की शांति आप खो बैठे. यहां वे व्यक्ति विचार करते हैं कि अब क्या करें! मन्दिर दर्शन करके आए. नगर सेठ विचार में पड़ गए कि मेरे पास अपार सम्पत्ति, इतना धन और इतना वैभव, यह सब किस काम का अगर प्रभु आज्ञा का पालन मेरे जीवन में न हो. कितनी दीन-दुःखी आत्मा इस शहर में हैं और यह कत्लेआम करने वाले चौबीस घण्टे के अन्दर अहमदाबाद को लूटेंगे. सारा शहर श्मशान बन जाएगा. यहाँ हजारों-लाखों निवासियों की सामूहिक हत्या कर दी जाएगी. कितनी बहनें विधवा बनेंगी, अनाथ बनेंगी. मां-बाप के बिना बेचारे बच्चे अनाथ हो जाएंगे. मैं क्या करूं? सारा शहर स्तब्ध हो गया. सब के मकान के दरवाजे बन्द हो गए. सैंकड़ों जैन मन्दिरों का रक्षण कैसे किया जाये. ये साधु महात्मा यहां रहते हैं, उनको क्या मालूम. आप उसकी अन्तःकरुणा देखिए. इनका उद्धार, इनका रक्षण करने की मंगल भावना से नगर सेठ ने निर्णय किया. अपने चार सिपाहियों के साथ बग्घी लेकर के दुश्मन की छावनी में गए. जहां वे लुटेरे आ कर के ठहरे हुए थे, उनका कैम्प था. व्हाइट फ्लेग (श्वेत पताका) लेकर के गए, ताकि वे मुझे गलत न समझ लें. वहां जो लुटेरों का सरदार था उसने कहा - सेठ साहब! कैसे आए? मैं आपसे एक याचना करने आया हूं. आप तो गांव के नगर सेठ हैं. उनको मालूम पड़ गया था कि नगर सेठ हैं. आप मेरे यहां भीख मांगने कैसे आए? जी हां! लोगों के प्राणदान की भीख मांगने आया हूं कि हमारे नगर में एक भी व्यक्ति मरना नहीं चाहिए. बोलिए मैं आपकी क्या सेवा करूं. उसने अपनी माँग रखी कि इतने करोड़ हमको नकद चाहिए. सोना, चांदी, नगीना सब मिला कर करोड़ों की सम्पत्ति चाहिए और यदि आप दे सकते हैं तो मैं आपकी भावना की कद्र करूँगा. नगर सेठ ने कहा, आप मेरा विश्वास कीजिए. आपने जो मुझसे मांगा उससे सवाया लाकर के दूंगा परन्तु कुरान की सौगन्ध खा कर के कहिए कि यह तलवार म्यान से बाहर नहीं निकलेगी और जैसे ही मैं आपको लाकर सम्पत्ति दूं, आप अहमदाबाद से ही वापिस अपने देश चले जायेंगे. हमारे नगर में किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाएँगे. इस देश के किसी भी गांव को आप. नहीं लूटेंगे. मैं वचन देता हूं, तुम जाओ. मुझे संवत स्मरण नहीं, यह दो-ढाई सौ वर्ष पूर्व की एक ऐतिहासिक घटना है. सेठ वापिस घर आए. घर पर अपने मुनीम से कहा कि जितनी सम्पत्ति है बाहर निकाली जाये. 136 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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