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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गुरुवाणी थी, उससे मैं समझ गया कि कुछ बोले बिना मुझे वहां चलना है. मैं गया. भयंकर गर्मी. पांव एकदम सिक जाएं रेलवे लाइन के किनारे-किनारे करीब तीस पैंतीस बरस की वह बहन और में पीछे-पीछे चलते चलते मैं विचार में पड़ गया और पूछा कि बहन घर किधर है ? महाराज घर तो कहां है, वहां झोपड़पट्टी है और उसी में रहते हैं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुझे ऐसी गलत जगह पर जाना पड़ा चारों तरफ झोपडपट्टी कहीं शराब बिक रही है. कहीं बदमाश लड़ रहे हैं दुनिया भर की वहां गन्दगी कैसा भयंकर वातावरण. अन्दर गया, जब उस झोंपड़ी में घुसा, छोटी सी झोंपड़ी और वहां जब उस आदमी को देखा तो मेरा हृदय कम्पित हो गया. नीचे लेटा हुआ था, बिछाने को कुछ नहीं, नाम को एक तकिया. घर के अन्दर नज़र गई, तो कोई बर्तन नहीं केवल एक-दो अल्यूमूनियम के थाल, कोई चीज नहीं. मैं बहुत विचार में पड़ा मंगलाचरण भी सुनाया सब कुछ किया. मैंने पूछा कि इसको थर्ड स्टेज में है. डाक्टर ने जवाब क्या बीमारी है ? महाराज क्या बताऊं कैंसर है और दे दिया और महाराज में इनकी सेवा में चार दिनों से जो आस पास जा कर के मजूरी करती थी, यह भी नहीं कर पाई खाने को रहा नहीं. आज चार दिन से इनको दवा नहीं दे सकी. महाराज दो बच्चे हैं छोटे चार दिन से बच्चों के लिए दूध नहीं ला सकी, बच्चे भी भूखे हैं. आयंबिल शाला में जाकर के इन बच्चों को खिलाया. ऐसी परिस्थिति है. महाराज! आशीर्वाद दीजिए, इस आत्मा को शांति मिले और अपना जीवन यह शान्ति से पूरा करें. कोई याचना नहीं. ऐसी दर्दनाक परिस्थिति में वहां गया. मेरा हृदय ऐसा हो गया कि मैं इसके लिए क्या करूं. मैंने कहा बहन ! सब हो जाएगा. मैं मंगलाचरण तो सुना कर के गया लेकिन वहां का सारा दृश्य मेरे आंखों के सामने चित्रपट की भांति नृत्य करने लग गया. गोचरी लाई हुई थी आहार के लिए साधुओं ने एक बार कहा, दो बार कहा कि गोचरी का समय है, गोचरी कर लो. एक बजने आया परन्तु मेरे मन में वही विचार, आहार कैसे करूं? उनकी क्या दशा होगी, जो आज मैं देखकर के आया हूं. चार-चार दिन से बच्चे भूखें हैं, उनको दूध पीने को नहीं, ये बीमार हैं, वह मृत्यु शैय्या पर हैं, उसके लिए दवा तक नहीं, घर में पानी लाने के लिए घड़ा तक नहीं. कैसी परिस्थिति, कैसी लाचारी वह सारा दृश्य मेरे हृदय में ऐसा असर कर गया कि मुझ से नहीं रहा गया. एक बहुत ही परम स्नेही मित्र थे. मैंने उनको बुलवाया कि तुम अभी के अभी आओ. जब तक वे नहीं आए, मेरे मन में ऐसी अशांति रही, उनके छोटे बच्चों को जो मुझे रास्ता बतलाने आए थे, उनको मैंने रोक रखा था. उसको खिलाया और मैंने स्नेही मित्र से कहा कि इस बच्चे के साथ अभी जाओ, उस घर की स्थिति देखो और सबसे पहले जो तुम से हो सकता है, उनके लिए करो. उसके बाद ही आहार करूंगा. तीन बजे मैंने आहार किया, 131 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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