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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी: मैंने कहा - वह बात सही है पर खून चूसने वाले तो रात को ही विहार कर गए, पलायन हो गए. इस माचे को क्यों मार रहे हो. इसने क्या गुनाह किया है? इसने तो तुम्हें आश्रय दिया, पूरी रात तुमने विश्राम किया. इसने क्या गलती की? क्या बताएं? शायद इसमें हों. मैंने सोचा यही हालत अपनी है. मौज-मजा तो इन्द्रियां करेंगी. बाल बच्चे करेंगे, आने वाली सन्तान करेगी, इन्द्रियों को आश्रय देने वाली आत्मा दुर्गति में जाकर मार खाएगी. कर्म की मार उस पर पड़ेगी. आत्मा ने क्या भूल की. खटमलों ने खून चूसा पर मार तो माचा ने खायी, उपार्जन करें, कमाएं, पाप करें, सब करना पड़े. झूठ बोलकर के पैसा पैदा किया. पाप करके पैसा पैदा किया, अनीति से अन्याय से उपार्जन किया. मज़ा लड़के, पोते, परपोते करेंगे. बाप अच्छा मजदूर, कमा कर के रख गया मौज करो. लड़के आपको धन्यवाद देंगे ऐसे भी नहीं हैं, क्योंकि आपने संस्कार ही नहीं दिया. __ मज़ा वे करेंगे और सजा आपको मिलेगी, विचार कर लेना, एक चिन्तन है. हमारी ऐसी स्थिति बन जाती है. इन्सान की आदत -- हर जगह मांगना शुरू कर देता है. कवियों की बड़ी सुन्दर कल्पना के अन्दर अपने जीवन की सच्चाई छिपी मिलेगी. हमारे जीवन की सच्चाई नजर आएगी. भगवान भी मानव की मांगों से तंग आ गए. मन्दिरों से भगवान चले गए. देवलोक में जाकर नारद जी को बुलाया और कहा “मुझे इन्सान से बचाओ. जिस मंदिर में गया, लाइन लग गई. किसी धर्म स्थल पर गया तो लाइन लग गई. भीड़ से तंग आ गया अब कहां जाएं." नारद जी ने कहा - "कैलाश पर्वत पर जाइये. वहां पर मनुष्य पाएगा." "क्या बात करते हो? तेनसिंग और एडमंड हिलेरी वहां भी पहुंच गए और झंडा फहरा के आ गए. अब कैलाश, हिमालय भी सुरक्षित नहीं है. वहां भी इन्सान के कदम चले गए. चन्द्रमा पर भी आ जाइये. कहीं टेलिस्कोप से देख लिया तो मेरी मुसीबत. राकेट तैयार हो गया, यहां तक उनकी सवारी आ जाएगी. वह भी सुरक्षित नहीं है." "भगवान ऐसा करिए कि पाताल लोक में चले जाइये" - नारदजी ने कहा, भगवान ने कहा – “पाताल में जाकर क्या करूं? मनुष्य महासागर की गहराई तक चले जाते हैं. मुझे वहां भी नजर आता है कि इन्सान वहां भी आ जाएगा. सोचकर बताओ कि मैं कहां छिपूं, जहां इन्सान न आए." नारद जी ने विचार पूर्वक एक ऐसी जगह बतलाई कि जहां इन्सान कभी जाता ही नहीं. नारद जी ने भगवान के कान में कहा - "इन्सान के हृदय में चले जाइये वहां इन्सान कभी झांककर नहीं देखता. अपना हृदय नहीं टटोलता वह मन्दिर में झांकेगा. गुरुद्वारों में झांकेगा, मस्जिद में जाकर झांकेगा, भगवान है, खुदा है. वह यह नहीं सोचेगा कि खुदा तो खुद के अन्दर में है." न्य महा पहच 92 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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