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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गुरुवाणी गार्ड और ड्राईवर आए और जब झांक कर के देखा तो पांव धंसने लग गये. उसके पांव में गिर गए. तू देवदूत है. तू नहीं होता तो आज यहां पर एक भी जीव न बचता. उसको गाड़ी में बिठाकर ड्राइवर ने गाड़ी पीछे कर ली. जब स्टेशन पर गाड़ी वापिस लौटकर आयी तो यात्रियों ने जाकर पूछा कि बात क्या है ? ड्राइवर और गार्ड ने कहा कि एक ऐसा देव पुरुष है जिसका जा कर तुम दर्शन करो, जिसकी कृपा से तुमको यह जीवन मिला, नया जन्म मिला. मौत के मुंह में से तुम निकल कर के आए. इस पुण्यशाली आत्मा का दर्शन करो. यात्री उतर गए. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वह बेचारा सीधा-सादा लंगोटी पहने हुए खड़ा था. पढ़ा-लिखा भी नहीं था. सद्भावना से लोग आए. जब उन्हें सच्चाई मालूम पड़ी, पर्स निकाला, किसी ने अंगूठी निकाली, किसी ने चेन निकाली, किसी ने घड़ी निकाली जो जिसके पास था, इसके उपकार को याद करने के लिए दे डाला. इसकी कृपा से यह नया जीवन मिला. इसका मान और सम्मान किया जाये. वह बोल नहीं पाया और अन्तिम समय उसने कहा कि बाबू जी, मेहरबानी करके क्षमा करो मेरा धर्म मुझे बेचना नहीं है. मेरे पुण्य को कलंक नहीं लगाना है. यह तो मेरे गुरु का वचन था जिसका कि मैंने पालन किया. यह तो मुझे अपनी आत्मा के लिए करना था. मुझे इन पैसों से बेचना नहीं. - गरीब की ईमानदारी देखी ? उसके धर्म की प्रामाणिकता आपने देखी ? उसने कोई सौदा नहीं किया "गिव एण्ड टेक" की भावना नहीं कि मैं कुछ देता हूं तो लूं - ऐसी कोई भावना नहीं. कुछ भी नहीं लिया और कहा कि जिसकी जो चीज़ है, वापिस ले जाए. मुझे कुछ नहीं चाहिए. बाबू जी माफ करो. मेरा धर्म मुझे बेचना नहीं. मेरे जीवन को कलंकित नहीं करना है. मेरी प्रसन्नता आप नष्ट मत करो. न माला पहनी, न तिलक लगाया, न साफा पहना, न अभिनंदन-पत्र लिया. न ही किसी का धन्यवाद लिया. जैसे उसने कुछ किया ही नहीं. उसने अपने कर्त्तव्य का पालन किया. गुरु का आदेश था जो मुझे करना था, मैंने किया. बड़ी नम्रता से, बड़ी सहजता से किया. उसने सबको धन्यवाद दिया और वह वापिस चला गया. कहां गया, यह नहीं मालूम. बड़ी खोज हुई, और वहां के ईस्टर्न रेलवे के जनरल मैनेजर को कलकत्ता से बुलाया गया. मालूम तो आखिर पड़ा, पुलिया के पास ही एक झोंपड़ी थी. बुलाकर के जनरल मैनेजर ने एक प्रश्न किया कि हमारे जैसे पढ़े-लिखे और शिक्षित व्यक्तियों में भी ऐसे विचार नहीं आते, ऐसी परोपकार भावना नहीं आती. तुम्हारे जैसा अशिक्षित व्यक्ति, अंगूठाछाप इंसान, यह इतना सुन्दर भाव तुम्हारे अन्दर कैसे आया? वह कहता है कि एक रात्रि एक जैन सन्त पैदल चलने वाले आए थे. शाम पड़ गई थी. उन्होंने हमारी झोंपड़ी को पावन किया. मैंने उनका सत्संग किया. उनकी कृपा का 79 For Private And Personal Use Only 0
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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