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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भूल रहे है, सत्ताके मदमें अहंकारके नशेमें । परन्तु याद रक्खें, अपनी संस्कृति या धर्म को नष्ट करके कोई भी देश जाती, या धर्म जिवित नही रह सकती हैं। अगर देशको आबाद बनाना है. और अपना आत्मविकाश करना है, तो अवश्य अपनी संस्कृति और धर्मको जीवित रखना होगा । और वह जीवित रहेगी संपूर्ण अहिंसाके व वहारिक पालनसे । धर्म प्राण देशके लिए बधशालाएं लांछनरूप हैं ! जहां पूर्व में हम विश्वको अहिंसा एवं सभ्यताका पाठ पढाते थे, वही आज हम हैं कि हरबात में दूसरोंका मूह ताकते हैं । वे आज सभ्य संस्कृत व व्यवहारिक कहलाते हैं, जबकी हम असभ्य असंस्कृत, घ अव्यवहारिक कहलाते हैं । कारण यहीकि हम अपनी संस्कृतिका अपनेही हाथों से खून कर रहे हैं । अब भी चेत जांय | वर्तमान में जो चीनके साथ तनाव चल रहा है, उसे देखते हुए और भी राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता हैं । सरकार अगर ऐसे अवसरों पर जनता के विरोधोंकी और दुर्लक्ष रहेगी तो वह एक अदूरदर्शिता सूचक कार्य होगा । ऐसी स्थितिमें सरकारको समस्त बधशालाए, मूगि उद्योग, मत्स्य उद्योग आदि हिंसक प्रवृत्तिको शीघ्रातिशीघ्र बंदकर देना चाहिये । जिससे राष्ट्रको अहिंसक समाजका बल भी प्राप्त हो। इससे राष्ट्रको एकांत लाभ ही होगा, नुकसान नहीं । इससे राष्ट्रीय एकतामें भी अभिवृद्धि ही होगी । मेरी भारत सरकार से यही निवेदन हैं कि इस प्रकारके राक्षसी योजनाओंका तथा आसुरीवृत्तिका त्याग कर देवी वृत्तिको हृदय में धारण करें; जिससे देश व प्रजाका कल्याण हो । साथही पुण्योपार्जन कर हमें भी संतोष प्रदान करें । For Private And Personal Use Only
SR No.008709
Book TitleDevnar Ka Katalkhana Bharat Ke Lie Kalank Roop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri, Narayan Sangani
PublisherDevnagar Katalkhana Virodhi Jivdaya Committee
Publication Year1963
Total Pages58
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size4 MB
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