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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इन तीनों प्रकार के तत्त्वों को हम जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर निर्जरा-बन्ध और मोक्ष इस प्रकार नौ तत्त्वों के रूप में जान सकते हैं । स्थानांग सूत्र में इस तथ्य को पुष्ट करनेवाली एक गाथा है - "नव सब्भाव पयत्था पण्णता तंजहा - जीवा, अजीवा, पुण्णं, पावो, आसवों, संवरो, निज्जरा, बंधो, मोक्खो।" जीव, जिसका लक्षण उपयोग है, जिसे सुख दुःख का ज्ञान होता है और जो ज्ञानादि शक्तियों का पुंज है उसे जीव कहते हैं । जीवों के मध्यम १४ भेद हैं और उत्कृष्ट ५६३ भेद हैं। जीव का विपक्षी अजीव है, जो कि जड़ पदार्थ है, उपयोग शून्य है और सुख-दुःख की अनुभूति से रहित है। अजीव के मध्यम भेद १४ है और उत्कृष्ट ५६० है। कर्मों की शुभ प्रवृतियाँ-पुण्य कहलाती है । यह नौ तरह से बांधा जाता है और ४२ प्रकार से भोगा जाता है। कर्मों की वे अशुभ प्रवृत्तियाँ पाप कहलाती है, जिनसे आत्मा का पतन हो जाता है। पाप कर्मों का बन्ध १८ प्रकार से बांधा जाता है और ८२ प्रकार से उसका फल भोगा जाता है । जिसके द्वारा शुभ और अशुभ कर्मों का ग्रहण किया जाए उसे आस्रव कहते हैं । इसीको बंध का कारण भी कहते हैं । मोटे रूप से आस्रव के बीस भेद है । समिति गुप्ति द्वारा आश्रवों का निरोध ही संवर कहलाता है । संवर बीस तरह से होता है । फल भोगकर या संयम और तप से कर्मों को धीरे-धीरे क्षय करना ही निर्जरा है । निर्जरा के १२ भेद हैं । आश्रव के द्वारा आए हुए कर्मो का आत्मा के साथ सम्बन्ध होना बन्ध है. प्रकृत्तिबन्ध, स्थिति बन्ध, अनुभाग बन्ध और प्रदेश बन्ध इस तरह बन्ध के चार प्रकार है । कर्मों में बन्ध से सर्वथा छूट जाने पर आत्मा का अपने स्वरूप लीन हो जाना मोक्ष है. मोक्ष के भी चार प्रकार हैं। यहाँ, यह समझ लेना चाहिए कि तथ्य, तत्त्व, परमार्थ, पदार्थ ये सब पर्यायवाचक शब्द है । तत्व-पदार्थ अनादि अनंत है, स्वतंत्र सत्तावाले है, द्वादशाङ्ग गणि पिटक का निष्कर्ष है। जिनका अस्तित्व सदा रहता है, उन्हें तथ्य कहा जाता है । आध्यात्मिक दृष्टि से तत्त्व मीमांसा - 137 For Private And Personal Use Only
SR No.008701
Book TitleAdhyatma Ke Zarokhe Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year2003
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Spiritual
File Size11 MB
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