SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir युगादिवन्दना [ मन्दाकान्तावृतम् ] सत्कारुण्याऽमृतरससृतं, पावनं सिद्धिकार, हंसानां ते प्रवचनमिदं, मानसाभं जिनेश ! । सेवाम्यद्धा सकमलमलं, पाप तापाऽपहेशम, बोधागाधं सुपद-पदवी-नीर-पूराभि-रामम् ।।९।। रेवा तावद्विमल सलिला नर्मदा शर्मदाऽषि, काशीः काशी कलुष हरिणी तुङ्ग भद्रा विभद्रा । तुजा गङ्गा जिनमतसरो-नाप्त मन्तः पवित्रम् , जीवाहिंसा-विरललहरी- संगमागाह-देहम् ।।१०॥ भो भो भव्या ! यदि शिवपुरे मोक्ष लक्ष्मी बुभुक्षा, सिद्धान्तान्धिं समुपसरत प्रोल्लसन्न्याय चक्रम् । निर्णिक्लान्तः परमगिरिमा गार मानन्द हेतुम् , चूलावेलं गुरुगममणी-संकुलं दूर पारम् ॥११॥ मोहद्रोह क्षितितनु रुहोन्मूलने हस्ति हस्तम् , प्रोभिन्दन्तं परमतरजःपुञ्ज-मुद्भुत शस्तम् । संसेव्यं श्रीजिनजनगणैः कामदं संश्रितानाम् , सारं वीरा-गम-जलनिधि सादरं साधु सेवे ॥१२॥ [ स्त्रग्धरावृत्तम् ] दन्तश्रेणी प्रभाऽधः कृत कुमुद हसत्, क्षीर सच्चन्द्र-चन्द्रः, स श्रीमानादिनाथः प्रभवतु भविनां, भावुकाय प्रकामम् । यस्य व्याख्यानकाले किरति सुरगणः, पुष्पवृष्टी विचित्रा, बामूलालोल धूली बहुल परिमला लीढ़ लोलालि मालाः ॥१३॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008691
Book TitleYugadi Vandana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages149
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy