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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org " हाथपग निर्बळ, बने, जो श्वास छेल्ला संचरे; तु आपजे त्यारे प्रभुमय, मन मने छेल्ली घडी. ३ हु जीवनभर सलगी रह्यो, संसारना संतापथी; तु आपजे शांतिभरी निद्रा मने छेल्ली घडी. ४ ज्यारे मरण शय्या परे, मिचाई छेल्ली आंखडी. तु आपजे त्यारे प्रभु, दर्शन मने छेल्ली घडी. ५ अगणित अधर्मो में कर्या, तन मन वचन योगे करी; हे क्षमासागर क्षमा मुजने, आपजे छेल्ली घडी. ६ अंत समये आवी मुजने, ना दमे घट दुश्मनो; जागृतपणे मनमां रहे, ताक स्मरण छेल्ली घडी. ७ षोडशप्रकाश : Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्वन्मतामृतपानोत्था, इतः शमरसोर्मयः पराणयन्तिमां नाथ !, परमानन्दसम्पदम्. इतश्चानादि संस्कार मूच्छितो मूर्च्छयत्यलम् ; रागोरगविषावेगो, हताशः करवाणि किम् ? रागाहिगरलाघ्रातो ऽकार्ष यत्कर्मवशम् ; तद्वक्तुमप्यशकतोऽस्मि, धिग्मे, प्रच्छन्न पापताम्. ३ क्षणं सक्तः क्षणं मुक्तः, क्षणं कुद्धः क्षणं क्षमी: मोहाद्यैः कीडयैवाहं, कारितः कपिचापलम्. प्राप्यापि नव सम्वोधि, मनोवाक्कायकर्मजैः; दुश्चेष्टितैर्मया नाथ !, शिरसि ज्वालितोऽनलः. तवय्यपि नावरि त्रातार्, यन्मोहादिमलिम्लुचैः, रत्नत्रयं मे ह्रियते, हतोशो हा । छतोऽस्मि तत्. For Private And Personal Use Only ६ ३१
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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