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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૨ बमणी त्रिगणी सोगणी, सहसगी ए प्रीत; तुम साथे त्रिभुवन धणो, राखु रूही रीत. आंख तळे आणू नहीं, अवर अनेरा देश; साहिब जब थे में सुण्यो, तु हि देवाधिदेव र भूतळे भला भलेरडा, जे जाणो जे जाण; ते सघळा ए तुम पछी, सीमन्धर जग भाग.. श्रीमीमन्धर साहिबा. मंत्रोच्चार - खमाममा. निःस्नेहि सुखोया रहे, वेलु कण ज्यु होगा। ससनेहा तिल पीलीए. वहीं मथे मा कोय. र नेह न कोजे जीहां लगी, तिहां जीवने सुम्ब होय; नेह रिह जब उपजे, तब दुःख माले सोम२ निर्गुण नेह न कीजीए, कोजे सद्गुणा मंग; सीमन्धर जिन सारीखो, राखु अधिको रंग. ३ श्री सीमन्धर साहिबा. मंत्रोच्चार स्वमानमा. (१२) क्षेत्रविदेहमां तुम वमो, हु बसु भरन मोझारः इहां थकी करु वंदना, श्वास माहि सो वार. १ तुं छे म्हारो साहिबा, हुं हुं तारी दाम; गुण अवगुण सहु उवेखीन, करुणा करजो ग्वास.. श्री सोमन्धर इहां थकी, नित्य धंदु प्रभात; त्रिकरण त्रिहुं योगशु, ज अहनिश जाप. ३ भरतक्षेत्रमा हु रहु, आप रहा छो विमुखः ध्यान लोहचुंबक परे, दृष्टि कर मन्मुत्र ४ वृषभ लंछन चरणमां, कंचन वरणी काय; चोत्रीश अतिशय शोभता वंदु सदा तुम पाय, ११ श्री सीमन्धर माहिया, मंत्रोच्चार खमासमण. For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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