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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाति वैर शमावी ए, प्रभु अतिशय अदमुत; संशय सर्वनां टाळता, करतां भविजन पूत, ३ हु निर्भागी इहां रडबडु, शा कीघां में पाप ? ज्ञानी विनानी गोठडी, किहां जइ करूं विलाप ? ४ मात विनानो बाळ जेम, आथडतो कूटातो आव्यो छु तुज ओगळे, राखो तो करु बातो. क्रोड क्रोड वंदना माहरी, अवधासे जिन देवः मांगु निरन्तर आपना चरण कमलनी सेव. ६ जकिचि ० नमुत्थुणं • जावति वेइआइ " खमासमण ० जावंत केवि साहू ० नमोऽर्द्दन् सुधीनां सूत्रो बोली निन्न लिखित स्तवन परम उल्लसितभावे बोलवु : बे कर जोडी विनबु रे लाल, मारी विनतडी अवधार रे; तुमे महाविदेहमां वस्या रे लाल, अमने छे तुम आधार रे. प्रभाते उठी करू वंदना रे लाल०१ भरतक्षेत्रमां हु अवतर्यो रे लाल, किम करी आवु हजूर रे तुभ दक्षिण नवि पामीयो रे लाल, रह्यो मजूरनी मजूर रे. प्र०२ तुम पासे देव घणा वसे रे, लाल एक मोकलजो महाराज रे; मनना सन्देह प्रभु पूछोने रे लाल, करु सफळ दिन आज रे. प्र०३ केवळ्ज्ञानिना विरहथी रे लाल, मनुष्य जन्म एळे जाय रे: शुभ भाव आवे नहि रे लाल, शी गति माहरी थाय रे ? प्र०४ कर्मने मोहे खूब कस्यो रे लाल, हजी न थयो खुलास रे जिम तिम करी प्रभु तारजो रे लाल, हु तो धरु तुमारी आश रे. प्र०५ सीमन्धरस्वामिना नामथी रे लाल, थाय सफळ अब नगर रे -कल्याणमुनि इम विनवे रे लाल, प्रभु नामे जय जयकार रे. प्र०६ For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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