SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सन्मित्र पूज्य मुनि श्री कर्परविजयजी महाराजना शिष्यरत्न पन्यास श्री ललितविजयजी महाराजे 'कर्पर काव्यकल्लोल'मां अनन्तानन्त परमतारकरीना परमपवित्र श्रीमुखे सम्यक्त्व तेमज सम्यक्त्व पूर्वक व्रतादि ग्रहण करनार श्रावक श्राविकाओनी संख्या नवसो नवसो क्रोडनी छे. ... परम उज्जवलमहामहिमावन्त अनन्तानन्त परमतारका श्रीनु आराधन करता मेघघाराजे सिंचायेल कदंब पुष्पनी जेम साडा त्रण क्रोड रोमराजी विकस्वर बने. असंख्य आत्मा प्रदेशोमां अनन्तानन्त परमतारक क्षीर नीर, दुग्ध शर्करा, पुष्प सुवास, तुषार धवल के चन्द्र चन्द्रिकानी जेम ओतप्रोत बने श्वासोच्छवास अने रोमे रोमथी सीमन्घर ! सीमन्घर / सीमन्धर ! अबो अनाहत महानाद नीकळे, तो ज अनन्तानन्त परमतारकश्रोनु यत्किंचित् आराधन कयु गणाय. परम उत्कटभावे आराघन करतां आत्मा अनन्तपरमतारक तीर्थकर गोत्रनो" पण बन्ध करी शके. अमृन आराधनामां आवश्यक सूचनाओ (1) आरंभ समारंभनो सर्वथा त्याग. अत्युल्लांसत भावे सामूहिक चैत्यवंदन करवु. बार दिवसनां संलग्न आराधनमा शक्य प्रयासे परिमित द्रव्योथी नव दिवस एकासणां करवां, भने अग दिवस उपवास करवा. उपवासनी शक्ति न होय, तो ऋग आयंबिल करवा, आयंबिलनी पण शक्ति न होय, वो बार दिवसना ऐकासणामां(२) लीला शाकभाजी अने फलोनो त्याग. (3) अणिशुद्ध अखंड ब्रह्मचर्य पाळ. (4) विकथान सर्वथा त्याग. For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy