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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५५) श्री सीमंधर जिनराज सुणो मुज तातजी, __ अरज करूं करजोडी मानो मुज तातजी, भमियो हु काज अनंत निगोदमां नाथजी, __ पृथ्वी पाणी तेउ, वाऊ, बधु साधजी १ वनस्पति साधारण प्रत्येक जाणीए, काळ गुमायो तिहां एणे बहु प्राणीए वी, ति, चउरिन्द्रिय असन्नित अपजत्तापणु, तिरिय अनारज देश ए सरीखो गणुं. २ दक्षिण विग जिनदेव भमीयो हुँ भर घणा छेदन भेदन दुःख जनी तिहां मणा, हजीय न चेतो चित्त प्रभु आगम सुणी, केहणी करणी फेर जीणंदजी मुज तणी ३ हिंसा तणो जो पोष बहु रोषे को, मृषावाद अदत्त बहुविध ओदर्यो, मैथुन परिग्रह संगे सदा हुं राचीयो, क्रोध मान माया लोभ तणे वशे नाचीयो. ४ रागद्वेषनी भीड थकी नवि ओशों, कलह मिथ्याआळ थकी नवि ओशयों, पिसुण रतिमां मुज मन वस्यो , परपरिवार विशाळ भुजंगे ते डस्यो. ५ माया मोष जे दोष जे नडे नित आकरो चालु मिथ्या चाले तेणे नहीं पाधरो, लोक रंजनने काजे जे आगम वांचं भगुं, स्यादवाद सुधाए न जाण्यु निज पणुं. ६ For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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