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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री वीर संवत २४९८ ना द्वितीय वैशाख सुदि ६ ने गुरुवारे शुभ मुहते परम पूज्यपाद आचार्यदेव श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी महाराज. श्रीना शुभ सानिध्यमां महेसाणा नगरे श्री पुंडरी किणी महानगरीमा अनन्तानन्त परमतारक देवाधिदेव श्री सीमन्धरस्वामिना आत्मानी अजनशलाका प्रतिष्ठाना पुण्य प्रसंगे-- सकारादि सकारप्रारम्भक स्तुतिचक्र सद्भावे समरो सदा, श्री सोमंघर सुनाथ स्वर्ण शरीरे शोभता, शिवपुरनो संगाथ, सर्वसत्त्व सुंहकरू, शासन स्थापे जिनराज मयोगीना स्थानके, शासनना शिरताज. (१) सद्गुण सिन्धु सेवीए, शुचि सर्वांग शरीर. मागरवर समता तणा, स्वर्णाचल समधीर शशिकरवत् सुशीतल सूर्य समान सतेज शचीपति सुरगण सेवना, सारे सर्व सहेज. (२) श्वास सुगंधित स्वामिनो, ससुप्रमाण शरीर स्वामिना सुनयनथी, सदा सवे समक्षीर सुखवाणी शुभवदनथी, शमवे, सहु संताप. समवसरणे सांभळे, सर्व समय सावधान. (३) समवसरणे शोभता, सातिशय शुभसोह. सर्वद्याति संहारिया सर्वोतम संजोग. सुप्रतिहारज स्वामिने, सेवे सुरनर नाथ. सकल सत्त्व (विश्व) शिवकरूं समचतुरख संस्थान (४) सत्यकी सुत सोहमणो, श्री श्रेयांस सुजात सांप्रत समये सर्वना, संशय संहरनार सविज्ञाता सविदंसणी स्थापक संघ सल्हाण. रिसागरकैलासजी, शिष्यनु सत्कल्याण. (५) For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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