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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३१) (अनन्तवीरज अरिहंत सुणो मुज विनति-ए राग) 'सीमन्धर' जिनराज कृपाळु तारजो, जन्म जराना दुःखथी प्रभुजी उगारजो; विद्यमान प्रभु वात हृदयनी जाणता, साचा स्वामी सुखकर विनति मानता. १ काळ अनादि मोहवशे बहु दुःख ल्ह्यां, चार गतिनां दुःख विचित्र सहु सह्यां मोहवशे धामधूममां धर्मपणु ग्रां, शुद्ध स्वरूप स्याद्वाद् तत्त्वथी सद्दद्यु. २ गारिया प्रवाहमां दृष्टिरागे रह्यो, __ बाह्यक्रिया रुचि धामधूममां हुं पडयो; लोकोत्तर जिनधर्म परखीने नवि लह्या, गुरुगम ज्ञान विना हुं भवोभव लडथडयो. ३ प्रभु तुम शासन पुण्यथी पामी मे जाणीयु; मिथ्या दर्शन जोर कुमतिनु व्यापीयु; परख्युं सत्य स्वरूप जिनेश्वर धर्मर्नु, रहेशे जोर हवे केम आठे कर्मनु ४ तुज करुणा ऐक शरण सेवकने जाणशो, जाणी बाळक हारो करुणा आणशो; म्हारे शरणु एक जिनेश्वर जगधणी, तारो करुणावंत महेश्वर दिनमणि. ५ 'बुद्धिसागर' बाळ तुमारो करगरे, · साचा स्वामि पसाये सेवक सुख वरे, उपादाननी शुद्धि प्रभुता जागशे, जित नगारु' अनुभवज्ञाने वागशे. ६ For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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