SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२) (ऋषभ जिणंदशु प्रोतडी-से देशी) श्री सीमंघर' साहिबा, सुणो संप्रति हो भरतक्षेत्रनी वात के अरिहा केवली को नहि, केने कहीये हो मनना अवदात के श्री सीमधर० १ झाझु कहेतां जुगतु नहि, तुम सोहे हो जग केवलनाणके; भूख्या भोजन मागतां, आपे उलट हो अवसारना जाण के. श्री सीमंधर० २ कहेश्यो तुमेत भगतो नहि, जूगताने हो वळी तारे सांई के योग्य जननु कहेवु किश्यु, भावहीनने हो तारो ग्रहो बांहीं के. श्री सीमंधर० ३ थोडु हि अवसरे आपीये, घणानी हो प्रभु ! छे पछे वात के, पगले पगले पार पामीये, पछी लहीये हो सघळा अवदात के. श्री सीमंधर० ४ मोडु वहेलु तुमे आपशो, बीजानो हो हुँ न कसै संग के, श्री 'धीरविमळ' गुरु शिष्यनो, रास्त्रीज हो प्रभु अविचळ रंग के. श्री सीमंधर० ५ (१३) श्री 'सीमंघर' साहिबा, विहरमान भगवंतरे; जिनशु मन लाग्यो. 'पुक्खलावई' विजया मांहि विचरे अरिहंत रे, जिनशु० १ सोवनवर्ण पणसयधनु मन्दरगिरि सम धीर रे; जिनशु० 'श्रेयांस' नृपति कुळ दिनमणि, मन हीयडाहीर रे, जिनशु० २ For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy