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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७) १ २ (अनन्तवीर ज अरिहंत) पूर्वविदेह पुष्कलावती जयो जगपति ए. श्री सीमन्धरस्वामी, प्रह समे नित्य नमुं ए, जगत्त्रयभाव प्रकाशता, भवि प्रतिबोधता ए; उपकारी अरिहंत, प्रह समे नित्य नमुए. धन्य नयरी धन्य ते नरा, धन्य ते धराए; विचरे जहां श्री जिनराज, प्रह समे नित्य नमुए. धन्य दिवस धन्य ते घडी, देखशु आंखडीए; भक्तवत्सल भगवत, प्रह समे नित्य नमु ए महेर नजर अवधारजो, पतित उगारजो ; जिन "हर्ष" गणेश सनेह, ग्रह समे नित्य नमुं ए ३ ४ ५ स्वामि ‘सीमंधर' ! विनति, अवधारी जिनराज रे, नाम तुमारो सांभळी, रोमांचित होय काय रे. स्वामी० १ ओक नेडाही वेगळा, जो मन न गमे तेह रे, ओक अळगा पण ढूंकडा, जेह शुं अधिक स्नेह रे. स्वामी० २ जो चाहो तुम हेज शुं, तो उल्लसे मुज चित्त रे, एह उखाणो लोकमां दिलभर दिल छे प्रीत रे. स्वामी० ३ मन चाहे मळवा भणी दरिसण देखे न आंखे रे; पण शु कीजे देवने, आपी नहि मुज पांख रे. स्वामी० ४ तो हवे नित्य नित्य वंदना, जाणजो श्री जिनचंद रे; 'जिनसागर' प्रभु गावतां, पाम्यो परमानंद रे. स्वामी० ५ For Private And Personal Use Only
SR No.008679
Book TitleUd Jare Panchi Mahavideh Mai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherSimandharswami Jain Mandir Khatu Mehsana
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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