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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्वबिन्दुः ( ८७ ) २५६ व्यवहारनये मिथ्यादृष्टि अज्ञानी छे, ते सम्यक्त्व ज्ञाननो प्रति पद्यमानक होयछे. पण सम्यक्त्व ज्ञान सहित नहि. निश्चयनय कहेछे के सम्यग् दृष्टि ज्ञानी, सम्यक्त्व अने ज्ञानने अंगीकार करेछे. पण मिथ्यादृष्टि अज्ञानी अंगीकार करता नथी. २५७ व्यवहारनयथी मति,श्रुत, अवधि,मनःपर्यवज्ञानी,आभिनिबोधि कना पूर्वप्रतिपन्न होयछे. पण प्रतिपद्यमानक नथी. केबलीने तो उभयाभाव होय छे. कारणके तेमने क्षायोपशमिकज्ञानातीतपणुंछे. २५८ मत्यज्ञान, श्रुताज्ञान अने विभंगज्ञानवाला तो पतिपद्यपान कदाचित् होयछे पण पूर्वपतिपन्न नथी. निश्चयनयमतथी मतिश्रुत अवधिज्ञानियो पूर्वप्रतिपन्न नियमथी होयछे. पतिपद्यमानकनी पण भजना जाणवी. मनःपर्यवज्ञानी तो पूर्वप्रतिपन्न होयछे पण प्रतिपद्यमानक नथी. पूर्व सम्यक्त्वलाभ कालमा प्रतिपन्न मतिज्ञानिने पश्चात् यति अवस्थामां मनःपर्यायज्ञाननो सद्भाव होयछे. मत्यादि अज्ञानवाळाओने उभयाभावज होयछे. ज्ञानिने ज्ञाननी प्रतिपत्ति निश्चयथीछे माटे. For Private And Personal Use Only
SR No.008673
Book TitleTattva Bindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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