SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११) तत्वबिन्दुः १११ जिनवाणी श्रवण करतां दर्शनावरणीयकर्मनो क्षयोपशम थाय तथा ज्ञानावरणीय कर्मना क्षयोपशमे वाणी कानमांहि समज्यामा आवे, त्यारवाद वाणी ते दर्शनमोहनीय कर्मना क्षयोपशमयी यथार्थ आत्मस्वरूप ज्ञानमां आवे. तथा जिनवाणी ध्यानमाहि आवे, ते केम तो ते कहेछे के-धर्मातराय कर्मनो क्षयोपशम थाय त्यारे एकाग्रतारूप ध्यानमां सिद्धि वरे, ११२ बकुश, कुशील, पुलाक, निग्रंथ, स्नातक ए पंच पकामना नि ग्रंथ जाणवा. हाल वकुश अने कुशील एम बे नियछे. ११३ सम्यग्दृष्टिजीव मिथ्यावना उदये समकित वमीने पाछो मिथ्या वगुणठाणे जाय तोपण आयुष्य वर्जीने सातकर्मनी पल्योपमना असंख्यातमे भागे उगी एक कोडोकोडी सागरोपमनी स्थितिनो बंध उत्कृष्ट करे. तथा मुनिपणो पामीने पडे अने पाछो मिथ्यात्वे जाय तोपण आयुष्य वर्जी सातकर्म स्थिति बंध सागरे उणी एक कोडाकोडी सागरोपमनो उत्कृष्ट करे. तथा उपशमश्रेणिथी पडीने मिथ्यात्वे जाय तोपण आयुवर्जीने सातकर्मनी उत्कृष्टि स्थिति बांधे तो नवहजार सागरोपमे उणी एककोडाकोडी सागरोपमनो उत्कृष्टस्थिति बंध करे. ११४ विभंगज्ञानते अवधिदर्शनना पेटामांछे. For Private And Personal Use Only
SR No.008673
Book TitleTattva Bindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy