SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (106). तस्वबिन्दु. छे. स्थूलद्रव्यछे तेथी त्यां अन्हुर्मुहूर्त अवधिज्ञान उपयोगस्थितिछे. गुणो तेथी मूक्ष्मछे तेथी तेओमां आठ समय. अने गुण करतां पण पर्याय मूक्ष्मछे तेथी त्यां सात समय पर्यंत अवधिज्ञानना उपयोगर्नु अवस्थान कां. २२७ अवधिज्ञानमांषद्गुणभागनी हानि वृद्धि संभवेछे, तेनुंध्यान करवू. २२८ अवधिज्ञानमा फड्डक होयछे. एकजीवने संख्यात अने असं ख्यात फड्डक होयछे. फड्डक त्रण प्रकारनाछे. अनुगामिक अननुगामिक,अने अनुगामिक अननुगामिक उभयमिश्र. ए त्रण फड्डक पण वळी त्रण प्रकारे होयछे. प्रतिपाती, अप्रतिपाती अने प्रतिपाती अप्रतिपाति उभयरूपमिश्र, ते मनुष्य अने तिर्यंचना अवधिज्ञानमां होयछे. देव अने नारकमां नथी. प्राय अनुगामिक अप्रतिपाति फड्डको, तित्र विशुद्धि युक्तपणाथी तीव्र कहेवायछे. अननुगामि प्रतिपाति फड्डको तो अविशुद्धताथी मंद कहेवायछे. मिश्र तो मध्यम कहेवायछे. (वि) ६२९ अपवरक जालकांतरस्थप्रदीपप्रभापमफडकावधि ज्ञान होय छे. (वि.) अपवरकादिनालकांतरस्थ प्रदीप प्रभा निर्ग मस्थानानीवावधिज्ञानावरणे क्षयोपशमजन्यान्यवधिज्ञान निर्गमस्थानानीहफडुकान्युच्यन्ते ॥ ६३० नवौवेयकमां अभवी तथा भवी मिथ्या दृष्टि देवता छे तेने विभंग ज्ञान होयछे. For Private And Personal Use Only
SR No.008673
Book TitleTattva Bindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy