SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५५) तस्वबिन्दु ४९९ बाह्यतपजप प्रतिलेखना पूजा पतिक्रमण आदि बाह्यस्थूलधर्मनी क्रियाओछे. धर्मध्यान, पिंडस्थ, पदस्थ, रूपस्थ, रूपातीत, धारणा, आत्मामां रमणता, आदि आत्मधर्मनी सूक्ष्मक्रियाओछे, स्थूलक्रियाओतो अज्ञानी पण करी शकेले. पण धर्मनी सूक्ष्म क्रियाओ तो ज्ञानीज करी शकेले. सूक्ष्मध्यानादिक धर्मनी क्रिया करनार अनंतकर्मने दूर करेछे. वाह्यक्रिया करनार करतां ध्यानादिक अंतर सूक्ष्मक्रिया करनार अनंत गुण विशेष उच्च पदवी धारक जाणवो. ध्यानादिक सूक्ष्म अंतर क्रिया विना मुक्ति थती नथी, माटे जे पुरुषो सूक्ष्म क्रिया करनारने निश्चय वादी अक्रियवादी कही निंदेछे. हेलना करेछे. तेणे तीर्थकरनी निंदा हेलना करी एम जाणवू. स्थूल बाह्यधर्मनी क्रियाओमांथी सूक्ष्मध्यानादिक क्रियामां उतरतां अनुभव प्राप्त थायछे. अने तेथी केवलज्ञान प्राप्त थायले. ५०० गमे तेवा दुष्ट शत्रुथी जे अनिष्ट थतुं नथी. ते अनिष्ट राग द्वेषधी थायछे. ५०१ परनी निन्दा फरनार जे परने दोषो देले. ते ते दोपो ते पोते पामेछे. परनी निन्दा करनाग्नुं मुख पण देखवालायक नथी. For Private And Personal Use Only
SR No.008673
Book TitleTattva Bindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy