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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तस्वबिन्दुः ४ चोथो वस्तुधर्म. वस्तुस्वरूपे वस्तुधर्म पामतां स्वरूपाचरण स्थिरता तथा समकिन पामे, परमात्मस्वरूप थाय. ए चार भेदमाथी एक पण दुहवाय नहिं तेम प्रवर्तवु. जे भव्य क्रियाविधि आचरतो स्वस्वरूपोपयोगमां वर्ते ते शिघ्र कर्म नष्ट करी परमात्मपद पामे. १९-कर्म त्रिधाछे. अकर्मनी वर्गणा ते द्रव्यकर्म. पांच प्रकारनां शरीरते नोकर्म जाणवां, अने रागद्वेषते भावकर्म आत्माश्रित छे. तेमां द्रव्यकर्म अने नोकर्म पौद्गलिकछे. तथा शाता अने अशाता ते द्रव्यकर्माश्रितछे तथा हर्षोल्लास ते भावकर्माश्रितछे. २०-पंच परमेष्टीनुं स्मरण करवायो ओदयिककर्मनुं निवारग याय, अरिहंतादिक द्रव्यथी शरण करतो जीव पापनो उदय निफल करे. तथा विपाकवेदन पग अल्प थाय, तथा अपा अपंमिरओ-आत्मा आत्मानुं शरण करे अर्थात् स्वस्वरूपमा परिणमेतो सर्वकर्म क्षय करे. एम आत्मसरण अने निमित्तशरणनो भेद जाणवो. अरिहंतनुं नाम स्मरतां, ध्याता, रागद्वेष नष्ट थाय, सिद्धपद स्मरणा, ध्याता, आत्मा अरूपिभावने पामे. तथा आचार्यपद गणतां, स्मरतां, विचारतां, ध्यातां, पंचाचार प्रवर्तन सुलभ थाय, अने भवांतरे आचार्य गणधरादिक पद पामे. तथा उपाध्यायपदनुं स्मरण करतां तथा ध्यातां शास्त्रार्य तथा सूत्राभ्यासनी सुलभता थाय, भवांतरे अध्यापन शक्ति For Private And Personal Use Only
SR No.008673
Book TitleTattva Bindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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