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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्वबिन्दु. ४७६ अमूर्तत्व,सर्ववेतृत्व,निरावरणत्व,आदि केवलज्ञानना स्वपर्याय छे अने ज्ञेय सर्व पदार्थोछे ते केवलज्ञानना परपर्यायछे. (वि) ४७७ सामान्यतः श्रुतज्ञानना स्वपर्याय अने परपर्यायछे से केवल ज्ञानना पर्यायतुल्य थाय. (वि.) ४७८ उपजतीवेला अन्तर्मुहुर्तमां जीव करे ते पर्याप्ति अने ते पर्याप्ति पश्चात् जीवे त्यां मुधी रहे ते प्राण जाणवा. (र) ४७९ पहेला बीजा अने त्रीजा ए त्रण अनंताना स्वामी कोइ नथी. माटे ए त्रण अनंता शून्यछे. चोथा अनंतामां अभव्य जीव आव्या. पांचमा अनंता मध्यभांगे सम्यक्त्व पडवाइ जीव कह्या. तथा पडवाइथी अनंतगुणा अधिक अनंतसिद्ध पांचमा भंगमांछे. छठा अनंतामां कोइ नथी. सातमा अनंतामां पण कोइ नथी. ए सर्व निगोदिया वनस्पतिकायना जीव आठमे अनंतेछे तेथी अनंतानंतगुणा अधिक पुद्गल परमाणुआछे. तेथी काल, तेथी सर्व आकाश प्रदेश तेथी केवलज्ञान दर्शनना पर्याय अनुक्रमे अधिक आठमां अनन्तामां जाणवा. नवमा अनंतागां कोइ नथी. (रत्न) ४८० केवलीने शुकललेश्यानो उदयछे ते योगद्वारे परिणमे, योगर्नु परिणमन आदयिकभावे परिणमे. लेश्याए एक समये शाता For Private And Personal Use Only
SR No.008673
Book TitleTattva Bindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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