SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३) तत्वबिन्दु. ४१७ सिखंतवादीनो मत एवो छे के अनादि मिथ्यादृष्टिजीवछे ते उपशम समकित पाम्या विना प्रथमथीज क्षयोपशम समकित पामेछे. अन्य तो यथाप्रवृत्तिआदि करण वणना क्रम वडे अंतरकरणमां उपशम समकित पामेछे. अने आ उपशम समकिती त्रण पुंज करतो नथी. पश्चात् उपशम समकितथी च्यवी अवश्य मिथ्यात्वने पामेछ. कल्पभाष्ये पण एम कडं छे. कार्मग्रंथिक तो आ प्रमाणे मानेछे. सर्व अनादिमिथ्याहष्टि, प्रथम सम्यक्त्व लाभकालमा यथावृत्तादिकरण त्रिपूर्वक अन्तरकरण करेछे त्या उपशम समकित पामेछे. अने उपशम समकिती त्रण पुंज करेछेज, अने ते हेतुथी उपशम समकित थी च्यवेलो क्षयोपशमसमकिती, अने तेथी मिश्र,वा मिथ्यादृष्टि थाय छे. (विशेषावश्यक पत्र १६४ ) वेदकनो क्षयोपशम समकितमा अन्तर्भाव थायछे ४१८ वेदक समकितमां, समकितमोहनीयनो चरम पुद्गल ग्रास फक्त उदयरूप प्रवर्तेछे अने त्यां एक समयनी स्थितिछे, पश्चात् क्षायिक समकित पामे. (वि.) ४१९ संपूर्ण दशमा पूर्वथी आरंभीचउदमा पूर्व पर्यंत निश्चयथी सम्यक् श्रुत होयछे. (वि.) संपूर्ण दशपूर्वन्यूनथी ते आवश्यक श्रुत पर्यतमां सम्यक् श्रुतनी भजना. (वि.) For Private And Personal Use Only
SR No.008673
Book TitleTattva Bindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy