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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२२) तस्वबिन्दुः छे. तेथी यतिमां अपेक्षाए सर्व जगत्ना पर्यायो समायछे. तेथी सर्व जगत् यतिमांछे, ज्ञानादिकना पर्यायनी अपेक्षाए एम सिद्ध ठरेछे. ( विशेषावश्यक ) ३८५ सर्व वस्तुओ नैगम, संग्रह, व्यवहाररूप अविशुद्धनयनी अपे क्षाए अक्षर [ ध्रुव ] छे. तेमज सर्व वस्तुओ ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ अने एवंभूतनयनी अपेक्षाए क्षर [उत्पाद व्ययरूप अनित्य ] छे. द्रव्यास्तिकनयनी अपेक्षाए सर्व वस्तुओ अक्षर छे, अने पर्यायाथिकनयनी अपेक्षाए सर्व वस्तुओ क्षर [उत्पाद व्ययरूपछे. [ विशेषावश्यक ] ३८६ अभिधान शक्तिरूप सर्व अभिलाप्य प्रज्ञापनीय पदार्थों छे ते अकारादिक अक्षरना स्वपर्याय जाणवा, पण अनभिलाप्य न जाणवा-अकारना हस्व, दीर्घ, प्लुत भेद सानुनासिक, निरनुनासिक, उदात्त, अनुदात्त अने स्वरित ए अढार भेद आदि अनंत स्वपर्याय जाणवा. अकारअक्षरवाच्यविष्णुप्रमुख अन्य अनंत पदार्थ अस्तित्व संबंधवडे स्वपर्याय जाणवा. इकारादि वाच्य लक्ष्मी आदि पर्यायो अनंतछे ते अकारना परपर्यायछे, नास्तित्व संबंधथी. तेमज इकारना हस्वादिक वाच्य अनंत स्वपर्याय जाणवा. अने अकारादिकना अनंत स्वपयर्याय ते इकारना परपर्याय नास्तित्व संबंधथी जाणवा. एम सर्वत्र भावना करवी ( विशेपावश्यक.) For Private And Personal Use Only
SR No.008673
Book TitleTattva Bindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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