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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 118 ) तर बिन्दु ३५१ बीजामां, वारमामां, तथा तेरमामां, ए त्रण गुणस्थानकमां जीव मरे नहि. ३५२ चक्षुदर्शननो जघन्यतः विरहकाल अन्तर्मुहूर्त अने उत्कृष्टतः अन्ततकाल जाणवो. निगोदनी अपेक्षातः ३५३ परमावधिज्ञान, द्रव्यथी परमाणुने साक्षात् देखे. अगुरुलघु पर्यायने देखे. तेमज गुरुलघु पर्यायने पण देखे. परमावधिनो: समस्त पुद्गलास्तिकाय विषयछे. क्षेत्रथी परमावधिज्ञान असंख्यात लोकमात्र खंड देखे. कालथी असंख्यात उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी देखे. भावथी परमावधिज्ञान एक आश्री असंख्यात, संख्यात पर्याय देखे. सामान्यथी वर्ण, गंध रस स्पर्श वाळा चार पर्यायने एक द्रव्यमां जघन्यथी देखे. क्षेत्र अने कालथी रूपिद्रव्यगतछे. वस्तुतः क्षेत्र अने काल अरूपीछे. माटे क्षेत्रकालमा अवधिज्ञाननो विषय नथी. रूपिण्ववधेः. अवधिज्ञाननो विषय रूपद्रव्योमांछे. अनंतद्रव्य समुदाय भेगो करतो अनंत पर्यायने अवधि ज्ञानी देखे. ३५४ अष्टादशलिपीने संज्ञाक्षर कहेछे. अकारककारादिकने व्यज For Private And Personal Use Only
SR No.008673
Book TitleTattva Bindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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