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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ९८ ) तस्वधिन्दु. २९० क्षायिक वेदक समकित-गर्भज-मनुष्यना पर्याप्ताना पन्नरभे दमां पामौए-छप्रकृतिनो क्षायिकभावे क्षय करे, अने समकितमोहनीयना चरमदलिक एक समये वेदीने क्षायिक पामे तेने क्षाविकवेदक समकित कहेछे-नरकगति, तिर्यचगति अने देवतानीगति ए त्रणगतिमां परभवतुं आवेलं क्षायिक समकित होय. २९१ सास्वादन सम्यक्त्व-मनुष्यना वसेनेबेभेद गर्भज पर्याप्ता अने अपर्याप्ता-देवताना एकशोसित्तेर भेदमा पर्याप्ता अने अपर्याप्तावस्थामां पामीए. नवलोकांतिक अने पांच अनुत्तरविमानना देवोमा सास्वादन समाकित न पामीए. नरकगतिमां सात पर्याप्त भेदमां पामीए. तिर्यचगतिमां एकवीश भेदमां समकित पामीए. पांचतिर्यंच पंचेन्द्रियगर्भजना पर्याप्ता अने अपर्याप्ता मळीने दशभेद-समुर्छिम तिर्यंच पञ्चेन्द्रियना पांच भेदमां अने त्रणविकलेन्द्रिय ए आठमां अपर्याप्तावस्थामा पामीए, तथा पृथ्वी, अप , वनस्पतिनी अपर्याप्तावस्थामांत्रण भेद. सर्व मळी चारसे भेद थाय. २९२ यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान अने समाधि-एवं योगनां आठ अंग छे सम्यग्दृष्टि जीवने आ आठ अंग, सम्यग् पणे परिणमे छे. For Private And Personal Use Only
SR No.008673
Book TitleTattva Bindu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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