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प्रस्तावना. सर्वातिशये शोभता, प्रभु महावीर जिनेश, शासननायकजगपति, प्रणमुं हुं विश्वेश. प्रभुस्नातनी भावना, करतां शांति थाय, रोग शोक दूरे टळे, स्नात्रपूजामहिमाय.
(आचार्य श्री बुद्धिसागरजी) सर्वातिसये विभषित शासन नायक चरम जिनेश्वर शासनोद्धा. रक श्रीमद् महावीर प्रभुनु स्नात्र के जेना रचनार बालब्रह्मचारी कविराज अध्यात्मज्ञानप्रचारक भारतभूषण शास्त्रविशारदजैनाचार्य योगनिष्ठ श्रीमद् बुद्धिसागरजी सूरीश्वरजी छे. तेनो अत्यंत हर्षपूर्वक प्रकाश करवामां आवे छे. अगाउ पण केटलाक पंडितो अने मुनिवरोना स्नात्र सुप्रसिद्ध छे, परंतु जमा• नाने अनुसरीने आसन्नोपकारी शासनप्रभावक श्रीमद् महावीरमभुर्नु स्नात्र अत्यारसुधी कोइए बनावेलु नहोत, ते गुरुश्रीए केटलाक भतोना आग्रहथी रचीने समाजपर उपकार कयों छे, ज्यारे ज्यारे महान तीर्थकरोनो विश्वमां जन्म थाय छे त्यारे त्यारे इंद्रो भक्तिभावपूर्वक जन्मोत्सव करे छे. तेवी भावनाने धारीने अत्यारे पण जैनमंदिरोनी अंदर सिंहासनमां प्रभु अने सिद्धचक्रने पधारावीने अष्टप्रकारे स्नात्र नणावी पूजा (सेवा) भक्ति करवामां आवे छे. जैनधर्म स्याद्वाद शैलीथी भरपूर छे, अने तेमां एकांतवाद याने दुराग्रह कदाग्रह धारण न करवो ए वात स्पष्ट छे, छतां पण समाजमां हजु पण तेवा मनुष्यो छे के एकांत कदाग्रह करी साध्यने भूली जइ के साधनोना एकांत मोहमां शक्तिनो व्यय करे छे अने एकांत कदाग्रहमा समाजनेज रहेवा
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