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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२ वृक्षादीनांदयाकार्या, हिंसा कार्या न पक्षिणाम् अनाथादिमनुष्याणां, पालनंपुण्यहेतवे ॥३४॥ वृक्षपश्वादिजीवाना, मुपग्रहश्चजीवनम् : मनुष्याणांभवत्येव, कुरु परोपकारताम् ॥३५॥ दयासेवादिसत्कर्म, कुरूपकारिणः प्रति: धनसत्तादिभोगेन, दुःखिजीवदयांकुरु ॥३६॥ क्रोधेन वैरभावेन, हिंसा मा कुरुदेहिनाम् देशराज्यादिलोभेन, हिंसां मा कुरुदेहिनाम् ॥३७॥ धर्मयुद्धादिमोहेन, हिंसां मा कुरु देहिनाम् : वर्णरंगादिमोहेन, हिंसां मा कुरु देहिनाम् ॥३८॥ देवदेव्यादिपूजाया, मिषेण पशुपक्षिणः माजहि देवदेव्यस्ते, खादन्ति न पशून् ध्रुवम् ॥३९॥ दयाधर्मसमो धर्मों, न भूतो न भविष्यति: दयादानादिसत्कार्य, मघवृष्टिश्वशान्तयः ॥४०॥ यत्रहिंसाजनादीनां, धर्मभेदैः परस्परम् : तत्रराज्येच देशे च, दुःखराशिपरम्परा ॥४१॥ स्वधर्मिसंघवृद्ध्यर्य, माजहिभिन्नधर्मिणः कस्याऽपिदेहिनोहिंसां, मा कुरू धर्मगर्वतः ॥४२॥ भिन्नधर्मिजनान् हत्वा. मा कुरुष्व स्वधर्मिणाम् : वृद्धिं हिंसाभवेद्यत्र, तत्र धर्मो न लेशतः ॥४३॥ अहिंसासर्वलोकानां, सर्वजातीयधर्मिणाम् : कर्तव्या न्यायधर्मेण, नाऽस्तिधर्मोदयांविना ॥४४॥ दुष्टिनास्तकलोकेषु, हिंसावुद्धिंतु मा कुरु विरुद्धधर्मिणांहिंसा, मा कुरुष्व दयांकुरु ॥४५॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008664
Book TitleShuddhopayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1924
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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