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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१२ द्रव्यप्रकाश. लगी रह्यो परभाव मेरो एतो भर्म हे; जेसे लोह प्रमको निमित्त कह्यो चमकको चमककी शक्तिको निमित्त लोहकर्म हे, ऐसे जीव कर्मको संयोग लगी रह्यो तोमी निहचे विचारे मिन्न कर्म जीव धर्म हे ॥ ३१ ॥ ॥अथ मीमांसकमत कथन जैन उत्तर सहित॥ ॥सवैसा इकतीसा ॥ मंद कहे सुखदुःख भाव सिव आदिककी करता प्रकृति एक जीव ब्रह्म न्यारो हे, करता न काहुको हे भोगता न होय काको करता दिवाको सब प्रकृतिको प्यारो हे; तासो कहे बुद्ध भैया शिव भेद दोनुं क्रिया एक करे ऐसो बोध कहा सौ विच्यारयो हे, सुखदुखकी निमित्त प्रकृति कहीसो सत्त ताको काके कारिजको कर्नाभोक्ता धारयो हे ॥३२॥ ॥जिनवचन ॥ ॥दोहा॥ करता भोक्ता ज्ञानको, निहचे ब्रह्म सदैव करे भोगवे कर्मको, विवहारेय जीव. ॥ ३३ ॥ ॥ ब्रह्मवादीमत कथन ॥ ॥सवैया इकतीसा ॥ ब्रह्मवादी कहे ब्रह्म एकहे अखंड सो तो ध्रुवज्ञान मुद्रा धरि वैकुंठमे रहे हे, ताके सब अंस ए ते दीमे जगमांहि जे ते जङज्ञाता नवनव सब वास लहेहे; पूर्ण नित्य ब्रह्म ज्योति ताकी इछा जब होत तब ताही अंसको भी वैकुंठमे गहे हे, ऐसे सुफ ब्रह्म देवचंद निजाधीन वशे ताको कर्मवसि सुखी दुःखी कोन कहेहे. ॥ ३४ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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