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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४९४ www.kobatirth.org द्रव्यप्रकाश. ॥ अथ शिष्य प्रश्न ॥ || सवैया इकतीसा || धोकाकाश मान अधरमताकेमान असंख्य प्रदेशी एक जीव युं अनंत है, लोकालोक नभसम पुद्गलअणु द्रव्य कालके सुछसमें वरतना अनंत है; आधार लोकाकाससो प्रदेश ते असंखराशि वास यान तुछ अरू आधेय महंत है, ताते कैसे ए समाय कहो सामी को उपाय द्रव्य रिती थिति कीतौ हम मन भ्रांति है ॥ ५४ ॥ ॥ अथ गुरु उत्तर || || सवैया इकतीसा || Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैसे एक जलधाउं तदमित जलभृत तामे तदुचित्त सरकरा गलि जाय है, तामे लुणका करकौ गारिडारे बारडारे तामे सूइको समूह षोभे ठहराय है; जैसे एक गउंमांहि पांचौ वस्तु टहराहि जलादिक तहकीक प्रगट दीसाय है, तैसे लोकाकाशमांहि पाचौ द्रव्यमाय जाहि अवगाह गुनकी समकि कहयाय है ।। ५५ ।। || अन्यमति प्रश्नोत्तर कथन || ॥ सवैया इकतीसा ॥ अन्यमति पक्ष गहे है यही बात सब धरम अधर्मं द्रव्य जगमांही नाही है, परतक्ष दीसे नाही अनुमान ज्ञान नाही उपमान शब्दांही एती न कहाही हे ताते जैन कहे न अनुमान लेकै यथा इंद्री अगृहीत भाव जगमाहि होही हैं, गतिहेत सो उहेत दधिवृत घृतवत् तैसे अरूपी नित्य द्रव्य जगमांहि है. ॥ ५६ ॥ १४ For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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