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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्नात्र पूजा. णकविहि संघविय, करिस धम्म सुपवित ॥ सुंदरसय इगसत्तरि तित्थंकर, एक समय विहरति महीयल, चवण समय इगवीस जिण, जम्म समय इगवीस ॥ भत्तिय भावें पूजीया, करो संघ सुजगीस ॥ १ ॥ ॥ बाल बीजो॥ ॥ एक दिन अचिरा हुलरावती ।। ए देशी ॥ ॥ भव बीजे समकित गुण रम्या, जिन भक्ति प्रभु खगुण परिणम्या, तजि इंद्रिय सुख आशंसना, करी स्थानक वीशनी सेवना ।। १ ॥ अति राग प्रशस्त प्रभावता, मन भावना एहवी भावता, सवि जीव करुं शासन रसी, इसी भाव दया मन उल्लसी ॥ २ ॥ लही परिणाम एह भलं, निपजावी जिनपद निर्मलु ॥ आयुबंध वचे एक भव करी, श्रद्धा संवेग ते थिर धरी ।। ३ ॥ त्यांयी चविय लहे नरभव उदार, भरते तेम ऐवतेज सार, महाविदेहे विजयें वर प्रधान, मध्य खंडे अवतरे जिन निधान ।। ४ ॥ ॥अथ सुपनानी ॥ ढाल ब्रीजी॥ ॥ पुण्ये सुपनह देखे, मनमांहे हर्ष विशेषे, गजवर उज्ज्वल सुंदर, निर्मल वृषभ मनोहर ॥ १ ॥ निर्भय केशरी सिंह, लक्ष्मी अतिही अबीह ॥ अनुपम फूलनी माल, निर्मल शशी सुकुमार ॥ २ ॥ तेजेंतरणी अति दीपे, इंद्रध्वजा जग जीपे, पूरण कलश पडूर, पद्म सरोवर पूर ॥२॥ अग्यारमे रयणायर, देखे माताजी गुण सायर ॥ बारमे भुवन विमान, तेरमे अनुपम रत्न निधान ॥ ४॥ अग्निशिखा निघूम, देखे माताजी अनुपम ॥ हर्षी रायने भासे, राजा अरथ प्रकाशे For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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