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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्नात्र पूजा. वुट्ठी ॥ २ ॥ ए पाठ कहीने प्रभुनी आगल फूलो उछालवां, हवे आभरण तथा वस्त्रो लइने उभा छतां गाथाओ कहेवी, ते आ प्रमाणे: ॥ अथ वस्त्राभरण पूजा ॥ ॥ श्लोकः ॥ शक्रोयथा जिनपतेः सुरशैलचूला, सिंहासनोपरि मितस्नपनाऽवसाने । दध्यक्षतैः कुसुम चंदनगंवधूपैः, कृत्वार्चनं तु विदधाति सुवस्त्रपूजां, ॥ १ ॥ तद्वत् श्रावकवर्गएष विधिनालंकारवस्त्रादिकां, पूजां तीर्थकृतां करोति सततं शक्त्यातिभत्तयादृतः ॥ नीरागस्य निरंजनस्य विजितारातेस्त्रिलोकीपतेः, स्वस्यान्यस्य जनस्य निर्वतिकृते क्लेशक्षयाकांक्षया ॥२॥ एम कही आभरण तथा वस्त्र पूजा करवी ।। ॥ पछी ज्ञान पूजा करे, तेनी गाथाओ॥ ॥ नमंति सामिति महीवनाहं, देवाय पृयं सुजहेब पुवं ॥ भत्तीय चित्तं मण दामएहिं, मंदार पुष्फेह सवेह नाहं ॥ १॥ तहेव सदा मण मुत्त एही, सुगंध पुप्फेह वरंसएहिं ।। पूयंत वंदंत नमंत नाणं, नाणस्स लाभाय भवरकयाय ॥ २ ॥ ए गाथाओ कहीने पुष्पोनी माला चढाववी, तथा रौप्यमुद्रा, सुवर्णमुद्रा, मणि रत्न, अने वस्त्र एओयें करी स्वशक्ति अनुसार ज्ञाननी पूजा करवी. ॥ पछी धूप करती वरखतें आ गाथा कहेवी॥ ॥ मीनकुरंगमुदारमसारं, सारसुगंधनिशाकरतारं ॥ तारमिलन्मलयोत्थविकार, लोकगुरोर्दह धूपमदारं ॥ २ ॥ एम For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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