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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८०४ श्रीदेवचंद्रजीकृत विंशति विहरमानजिन स्तवनं. ॥ अथ एकोनविंश श्री देवजसाजिन स्तवनम् ॥ ॥ महाविदेह शव सोहामणु ॥ ए देशी ॥ देवसजा दरिसण करो, विक्टे मोह विभाव लाल रे ॥ प्रगटे शुद्ध स्वभावता, आनंद लहरी दाव लाल रे ॥ १ ॥ दे० ॥ स्वामी वसो पुष्कर बरे, जंबूभरत दास लाल रे ॥ क्षेत्र विभेद घणो पड्यो, किम पोहोंचे उल्लास लाल रे ।। २ ।। दे० ॥ होवत जो तनु पांखडी, आवत नाथ हजूर लाल रे ॥ जो होती चित्त आंखडी, देखण नित्य प्रभु नूर लाल रे ॥ ३ ॥ दे० ॥ शासनभक्त जे सुरवरा, विनवू शीष नमाय लाल रे ।। कृपा करो मुझ उपरें, तो जिनवंदन थाय लाल रे ॥ ४ ॥ दे० ॥ पूर्छ पूर्व विराधना, शी कीधी इण जीव लाल रे ।। अविरति मोह टले नहीं, दीठे आगमदीव लाल रे ॥ ५ ॥ दे० ॥ आतम शुद्ध खमावने, बोधन शोधनकाज लाल रे ॥ रत्नत्रयि प्राप्ति तणो, हेतु कहो महाराज लाल रे ।। ६ ॥ दे० ॥ तुझ सरिखो साहिब मिल्यो, भांजे भवभ्रम टेव लाल रे ।। पुष्टालंबन प्रभु लहि, कोण करे परसेव लाल रे ॥ ७ ॥ दे ॥ दीनदयाल कृपालुओ, नाथ भविक आधार लाल रे ॥ देवचंद्र जिन सेवना, परमामृत सुखकार लाल रे ॥८॥ दे० ॥ इति श्री देवजसाजिन स्तवनं ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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