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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीदेवचंद्रजीकृत विंशति विरहमानजिन स्तवनं ७९९ ॥ अथ त्रयोदश श्री चंद्रवाहुजिन स्तवनम् ॥ ॥ श्री अरनाथ उपासना || ए देशी || चंद्रबाहुजिन सेवना, भवनाशिनी तेह || परपरिणतिना पासने, निष्कासन रेह ।। १ ।। ० ।। पुद्गल भाव आशंसना, उद्घासन केतु ॥ सम्यग्दर्शन वासना, भासनचरण समेत ॥ २ ॥ च० ॥ त्रिकरण योग प्रशंसना, गुणस्तवना रंग || वंदन पूजन भावना, निजपावना अंग || ३ || चं ॥ परमातम पद कामना, कामनाशन एह || सत्ताधर्म प्रकाशना, करवा गुणगेह ॥ ४ ॥ चं० ॥ परमेश्वर आलंबना, राच्या जेह जीव ॥ निर्मल सायनी साधना, साधे तेह सदीव || ५ || चं० ॥ परमानंद उपायत्रा, प्रभु पुष्ट उपाय || तुझ सम तारक सेवतां, परसेव न थाय ॥ ६ ॥ चं० ॥ शुद्धतम संपत्ति तणा, तुम्हें कारण सार || देवचंद्र अरिहंतनी, सेवा सुखकार ॥ ७ ॥ चं० ॥ इति चंद्रवाहुजिन स्तवनं ॥ ॥ अथ चतुर्दश श्रीभुजंगस्वामि स्तवनम् ॥ || देशी लूअरनी || पुष्कलावइ विजयें हो, के विचरे तीर्थपति ॥ प्रभुचरणने सेवे हो, के सुर नर असुरपति || जसु गुण प्रगट्या हो, के सर्व प्रदेशमां ॥ आतम गुणनी हो, के विकसी अनंत रमा ॥ १ ॥ सामान्य स्वभावनी हो, के परिणति असहाइ ॥ धर्मविशेषनी हो, के गुणने अनुजाइ ॥ गुण सकल प्रदेशें हो, के निजनिज कार्य करे ॥ समुदाय प्रवर्त्ते हो, के कर्ता भाव घरे ॥ २ ॥ जड़ द्रव्य चतुष्कें २५७ For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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