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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशम श्री शीतलनाथजिन स्तवनं. ६४७ m-mana ___अर्थ:--एटला सर्व भाव ते सर्व सामान्य युक्त छे, ते सर्व केवलज्ञानगम्य छ, अथवा सामान्याश्रयी छे, जे विशेष ते सामान्य विना नहीं, अने सामान्य ते विशेष विना नहीं. सर्व पदार्थ सामान्यविशेष रूप छे ॥ न सामन्न तओ नत्थि, विसेसो खपुष्कं वा ॥ तथाच ॥ संमतौ ॥ दवं पज्जव विउअं, दव विउत्ता पज्जवा नत्थि ॥ उप्पायठिइ भंगा, हवइ दविय लख्खणं एवं ॥ १ ॥ इति ॥ तेमाटे सर्व द्रव्यनेविषे सामान्य धर्म अनंता छे, ते सर्व केवल दर्शनगुणें देखे छे. तेथी पण अनंत गुणा सामान्य धर्मने देखी शके एवी शक्ति छे, तेथी एटला पर्यायमय केवल दर्शन गुण छे. । उक्तं च विशेषावश्यके ॥ यावंतोहि ज्ञेयस्य पर्याया स्तावंतस्तदवभासकत्वेन ज्ञानस्याप्येष्टव्याः ॥ तथा भगवत्यंगे । अर्णता दंसणपज्जवा इति ॥ वास्ते केवल दर्शन पण अनंतुं छे, ए दर्शन, सर्व पदार्थना अस्तित्व सत्व वस्तुत्व प्रमेयत्वादि सामान्य द्रव्यास्तिकने देखे छे. एम चारित्र गुण ते पण अनंतपर्यायी छे, पोताना आत्माना सर्व पर्याय ते सर्वस्व धर्म छे तथा पोताथी मिन्न अनंता जीव द्रव्य तथा सर्व अजीव द्रव्य तेहना धर्म ते परधर्म छे, एटले सर्वस्वधर्ममा रमण, परधर्ममां अरमण, ए सर्व पर्याय चारित्रना छे, एटले स्वरूपरमण, परभावनिवृत्ति, ए चारित्रनी परिणति छे, अने अनादिमुं जे पररमणीयपणुं भूलथी थयु हतुं, ते निवारीने स्वशक्ति चेतनावीर्यादिकनी परिणति, ते परभावथी रोकीने स्वरूप विषे राखवी ए संवरभाव ते चारित्रनी अनंतता छे. ते संयमश्रेणी श्री ध्यवहारभाष्ये कही छे. जे सर्व जीवथी अनंतगुणा चारित्रना For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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