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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६३० दे० चो० बा० --------------------...-... आत्मिक शक्ति प्रकासे केतां प्रगट करे, तेने ऋजुसूत्रनय उत्सर्ग भावसेवना कहिये. ५ जेवारें आत्माने यथाख्यात क्षायिकचारित्र प्रगट थयुं, तेबारे जे चारित्र सहकारी आत्मशक्ति प्रगटे, शुद्ध अकषायी, असंगी, निस्पृहरूप शुद्ध धर्म उल्लास पामे, चारित्र सहकारी जे वीर्यादिक तेपण जे कषायानुयायी फरता हता, ते सर्व आत्मरमणी थया, ए धर्म जेटलो उल्लास पामे, ते सर्वशब्दनये उत्सर्गे भावसेवना जाणवी. इहां स्वरूपरमणी असहायी थयो, ते जेटलं अन्य असहायीपणुं नीपन्युं, तेटलं उत्सर्गसेवन जाणवू ।। ७ ।। इति भाव सयोगी अयोगीशैलेंसे, अंतिम दुग नय जाणो जी ॥ साधनताए निजगुण व्यक्ति, तेह तेवना वखाणो जी ॥ श्री० ॥८॥ ६ अर्थः--जेवार ए आत्मायें सर्व घनघातिकर्म क्षय करीने अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत चारित्र, अनंत वीर्य, ए चार मोटां अनंतक प्रगट कयौ, ए चार गुणने संकर तथा सहकारें जे बीजा वक्तव्य तथा अवक्तव्य अनंता स्वधर्मीगुण प्रगट थया, आत्मिक आनंदी थया, तेवारे समभिरूढनयें उत्सर्ग भावसेवा थई. ७ जे काले शैलेशीकरण करे, आत्मप्रदेशनो घन करे, अयोगीकेवलीपणुं थाय, तेवारें एवंभूतनये उत्सर्ग भावसेवना For Private And Personal Use Only
SR No.008662
Book TitleShrimad Devchandra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages670
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size9 MB
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