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(२२०) पांडानुग्रहशक्तितः॥
वेदक अने क्षायोपशमिक सम्यक्त्वने पौद्गलिक कहेवामां आवे छे अने उपशम अने क्षायिकने अपौद्गलिक कहेवामां आवे छे. उपशमक्षायिकसम्यक्त्वयोः पु. द्गलवेदनस्य सर्वथैवाभावात्. ___ चार गतिमां संक्षिपर्याप्त पंचेन्द्रिय जीवने प्रथम सम्यक्त्वनो लाभ थाय छे.
उपशम सम्यक्त्वथी च्युत जीव क्षयोपशम दृष्टि-मिश्रदृष्टि वा मिथ्यादृष्टि थाय छे. सिद्धांतना मत प्रमाणे अनादि मिथ्यादृष्टि जीव, तथाविधसामग्री सद्भाव अपूर्व करण वडे त्रण पुंज करीने शुद्ध पुद्गलोने वेदतो छतो उपशम सम्यक्त्व पाम्या विनाज
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